12. मकान के बारे में पूछताछ
जब भक्त नामदेव जी का मकान परमात्मा ने अपनी शक्ति से अत्यधिक सुन्दर बना दिया तो
आस-पड़ौस के लोग भक्त नामदेव जी से पूछने लगे कि इतना सुन्दर मकान किससे बनवाया है।
तब जब भक्त नामदेव जी ने बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में राग
सोरठि में दर्ज है:
पाड़ पड़ोसणि पूछि ले नामा का पहि छानि छवाई हो ॥
तो पहि दुगणी मजूरी दैहउ मो कउ बेढी देहु बताई हो ॥१॥
री बाई बेढी देनु न जाई ॥
देखु बेढी रहिओ समाई ॥
हमारै बेढी प्रान अधारा ॥१॥ रहाउ ॥
बेढी प्रीति मजूरी मांगै जउ कोऊ छानि छवावै हो ॥
लोग कुट्मब सभहु ते तोरै तउ आपन बेढी आवै हो ॥२॥
ऐसो बेढी बरनि न साकउ सभ अंतर सभ ठांई हो ॥
गूंगै महा अमृत रसु चाखिआ पूछे कहनु न जाई हो ॥३॥
बेढी के गुण सुनि री बाई जलधि बांधि ध्रू थापिओ हो ॥
नामे के सुआमी सीअ बहोरी लंक भभीखण आपिओ हो ॥४॥२॥ अंग 657
अर्थ: एक पड़ौसन नामदेव जी से पूछने लगी कि यह घर किससे बनवाया
है। मैं तेरे से दोगुनी मजदूरी दूँगी, मुझे उसका पता बता दे। नामदेव जी ने कहा–
बहिन ! वह कारीगर बताया नहीं जा सकता। तूँ विचार से देख वह सब जगह व्यापक यानि
मौजूद है। वह कारीगर हमारे प्राणों का आसरा है। वह प्रेम की मजदूरी माँगता है, अगर
उससे कोई घर बनवाए। अगर आदमी, लोगों और परिवार वालों से प्रीत तोड़कर उससे प्रीत जोड़
ले तो वह बेढी यानि कारीगर अपने आप आ जाता है। ऐसा कारीगर कथन नहीं किया जा सकता।
वह सभी स्थानों पर व्यापक है। जिस प्रकार गूँगे ने अमृत रूपी स्वाद चखा हो और वो
किसी से वर्णन नहीं कर सकता। उस कारीगर के गुण इस प्रकार हैं कि उसने सँसार समुद्र
के जल को बाँधकर रखा हुआ है। उसने ध्रुव आदि तारों को जगत के सुख के लिए आकाश में
टिका रखा है। अर्थात उस शक्तिवान ने सँसार समुद्र पर नियमों के अनुसार प्रबंध किए
हुए हैं और चन्द्रमाँ, सूरज, तारे आदि आकाश में स्थापित किए हैं। श्री नामदेव जी
कहते हैं मेरे स्वामी सरब व्यापक हैं, जिन्होंने बिछड़ी हुई सीता श्री रामचन्द्र जी
से मिला दी और अपने भक्त विभीषण को लंका का राज दिलवा दिया, उसी प्रकार उस प्यारे
ने मेरे पर कृपा की है।