11. भक्तों के कार्य परमात्मा करता है
भक्त नामदेव जी बाहर किसी एकाँत स्थान पर परमात्मा के सिमरन में जुड़े बैठे थे कि
अचानक किसी की आवाज आई और एक आदमी भागा-भागा आया और कहने लगा– भक्त जी ! जल्दी चलो
आपके घर में आग लग गई है। भक्त नामदेव जी ने घर पर आकर देखा तो वहाँ पर घर और सारा
सामान घूँ-धूँकर जल रहा था। भक्त नामदेव जी ने कहा– हे परमात्मा आप जो भी करते हैं,
सब ठीक ही होता है और अच्छा ही करते हैं। पास में ही खड़े हुए आदमी घर में से सामान
बाहर उठा-उठाकर लाने लगे। भक्त नामदेव जी ने कहा, जब सब कुछ वो परमात्मा करता है और
सब कुछ उसकी मर्जी से हो रहा है और यह सब वस्तुएँ हमें उसकी मेहर से ही प्राप्त हुईं
हैं। इन पर हमारा क्या हक है और जब वह इन्हें आग में जलाना चाहता है तो क्यों इन्हें
बचा रहे हो। यह कहकर उन्होंने बचाकर लाईं गईं सारी वस्तुएँ पुनः आग में डाल दीं और
बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग प्रभाती“ में दर्ज है:
अकुल पुरख इकु चलितु उपाइआ ॥
घटि घटि अंतरि ब्रह्मु लुकाइआ ॥१॥
जीअ की जोति न जानै कोई ॥
तै मै कीआ सु मालूमु होई ॥१॥ रहाउ ॥
जिउ प्रगासिआ माटी कुमभेउ ॥
आप ही करता बीठुलु देउ ॥२॥
जीअ का बंधनु करमु बिआपै ॥
जो किछु कीआ सु आपै आपै ॥३॥
प्रणवति नामदेउ इहु जीउ चितवै सु लहै ॥
अमरु होइ सद आकुल रहै ॥४॥३॥ अंग 1351
अर्थ: परमात्मा ने यह कौतक पैदा किया है उसने घट-घट में ब्रहम
को छिपाया हुआ है। जोती की बात जीव नहीं जानता परन्तु जो जीव करता है वह जोती जानती
है। जिस प्रकार से घड़ा मिट्टी से बना होता है और वह मिट्टी का ही रूप है। इसी
प्रकार से जीवों का रचनहार वो आप परमात्मा ही है। यह जो कर्म हैं वो जीव के बँधन
हैं। इसने जो कुछ किया आप ही किया। नामदेव जी कहते हैं कि जीव वो विचारता है जो लेता
है, पर यह अमर हो जाए तो सदा के लिए काल से रहित परमात्मा में समा जाए। जब बाणी की
समाप्ति हुई तब तक घर जलकर स्वाह हो चुका था। यह देखकर भक्त नामदेव जी बोले कि अब
हमारा मन शान्त हुआ है, क्योंकि उसकी दी गई सामाग्री उसकी रजा में, उसकी आज्ञा में
जलकर स्वाह हो चुकी है। माता श्री गोणाबाई जी ने कहा: पुत्र ! सारा सामान तो जल चुका
है और बाल-बच्चे बाहर बैठे हैं, रात भी होने वाली है, सर्दी का समय है, कुछ प्रबंध
करना चाहिए। भक्त नामदेव जी ने कहा: माता जी ! जिस परमात्मा ने सारी चीजें दी थी और
फिर अपनी रजा से वापिस ले लीं हैं वह फिर अपने आप ही मेहर करेगा। भक्त नामदेव जी के
मकान के पास ही एक अहँकारी धनी रहता था। उसने बड़ी शान में आकर कहा: भक्त नामदेव जी
! आपके मकान के साथ जो जमीन खाली थी उस पर देखों हमने कितना आलीशान मकान बनाया है,
चुँकि अब आपका मकान जल गया है तो यह खाली जमीन हमें दे दो, हम उस पर भी बहुत आलीशान
महल तैयार कर लेंगे। भक्त नामदेव जी ने कहा: ओ महाश्य जी ! जब आपका इतना आलीशान
मकान बना हुआ है तो फिर मेरी जमीन क्यों माँगते हो ? अहँकारी धनी ने कहा: नामदेव जी
! हमारा परिवार तो बहुत बड़ा है और शायद आप अपना मकान न बनाओ, इसलिए यह जमीन मुझे दे
दो। भक्त नामदेव जी: महाश्य जी ! मेरा मकान तो मुझे मेरा मालिक यानि परमात्मा आप ही
बनाकर देगा। यह सुनकर उस अहँकारी धनी ने कुछ अभिमान से भरा उत्तर दिया, जिसे सुनकर
भक्त नामदेव जी ने बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में "राग धनासरी"
में दर्ज है:
गहरी करि कै नीव खुदाई ऊपरि मंडप छाए ॥
मारकंडे ते को अधिकाई जिनि त्रिण धरि मूंड बलाए ॥१॥
हमरो करता रामु सनेही ॥
काहे रे नर गरबु करत हहु बिनसि जाइ झूठी देही ॥१॥ रहाउ ॥
मेरी मेरी कैरउ करते दुरजोधन से भाई ॥
बारह जोजन छत्रु चलै था देही गिरझन खाई ॥२॥
सरब सुइन की लंका होती रावन से अधिकाई ॥
कहा भइओ दरि बांधे हाथी खिन महि भई पराई ॥३॥
दुरबासा सिउ करत ठगउरी जादव ए फल पाए ॥
क्रिपा करी जन अपुने ऊपर नामदेउ हरि गुन गाए ॥४॥१॥ अंग 692
इस उच्च अवस्था के उपदेश को सुनकर वह धनी शर्मिन्दा हुआ और हाथ
जोड़कर क्षमा माँगी और वापिस चला गया।
माता जी ने फिर कहा: पुत्र नामदेव ! बेटा सर्दी का समय है कुछ
प्रबंध करो और इसके साथ ही भक्त नामदेव जी को कुछ रूपये दिए। भक्त नामदेव जी रूपये
लेकर बाहर आ गए। रास्ते में देखा कि कुछ साधू लोग बैठे हैं, पूछने पर मालूम हुआ कि
उन्होंने कल से खाना नहीं खाया। भक्त नामदेव जी ने बाजार जाकर उन रूपयों की रसद
खरीदी जो रूपये उनकी माता जी ने दिए थे और संतों साधूओं के आगे जाकर रख दी और कहा
कि लँगर तैयार कर लो। यह बात बोलकर आप चले गए और एकाँत में जाकर बैठ गए और उनके मन
में विचार आया कि सर्दी का समय है और बाल-बच्चे बाहर बैठे हैं। यह विचार आते ही यह
भी ख्याल आया कि उस परमात्मा की रजा में ही हमें राजी रहना चाहिए और जब संत और भक्त
उसके हो जाते हैं तो फिर उनके सारे काम आप परमात्मा ही पूरे करता है।
संतां के कारजि आपि खलोइआ हरि कंमु करावणि आइआ राम ।।
यह सोचकर भक्त नामदेव जी परमात्मा के नाम सिमरन में जुड़ गए। उधर
परमात्मा ने अपनी कला दिखाई और अपनी शक्ति को कारीगर का रूप देकर भक्त जी के घर भेज
दिया। जिसने सारा सामान एकत्रित करके भक्त नामदेव जी का घर पहले से भी कई गुना अधिक
सुन्दर और आर्श्चजनक रूप का बना दिया। यह घर परमात्मा ने अपनी शक्ति द्वारा आप बनाया।
इस प्रसँग को महान विद्वान भाई गुरदास जी ने इस प्रकार लिखा है–
“गाइ मेरी जीवालीओन नामदेव दा छपर छाइआ ।।“
जब कुछ समय के बाद भक्त नामदेव जी की समाधि खुली तो वह वापिस आए,
पर यह क्या उनका मकान तो बहुत ही सुन्दर बना हुआ था। माता जी ने कहा: पुत्र ! तूने
जो कारीगर भेजा था वो बहुत ही समझदार और कार्य करने में बहुत ही दक्ष एंव निपुण था
उसने बहुत ही कम समय में इतना सुन्दर घर बना दिया है। भक्त नामदेव जी ने कहा: माता
जी ! पर मैनें तो कोई कारीगर नहीं भेजा। मैं तो उसके ध्यान यानि परमात्मा के नाम
सिमरन में व्यस्त था लगता है वो ही मेरा मकान बना गया है। उस परमात्मा की बड़ी
दयालुता है, वो अपने भक्तों के कार्य आप ही सँवारता है।