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10. पारस पत्थर वाली कथा

पँडरपुर में एक ब्राहम्ण रहता था जिसके पास एक पारस पत्थर था जिसमें यह गुण था कि उसे जिस किसी लोहे से स्पर्श करो वह सोने का हो जाता था। इस पारस के आसरे वह ब्राहम्ण बहुत धनवान बना बैठा था। उसके बड़े-बड़े महल, सवारी के लिए रथ घोड़े, पहनने के लिए कीमती वस्त्र और खाने के लिए छत्तीस प्रकार के स्वादिष्ट व्यँजन बनते थे। उसकी पत्नी भक्त नामदेव जी की पत्नी की धर्म बहिन बनी हुई थी। एक दिन वह भक्त नामदेव जी के घर में मिलने आई और कहने लगी कि बहिन हमारे तो बड़े महल, सोनो चाँदी के गहने और कीमती वस्त्र हैं। धन-दौलत से सँदूक भरे रहते हैं, तूँ भी मेरी तरह से धनवान बन जा। भक्त नामदेव जी की पत्नी ने कहा कि बहिन हमारा गुजारा तो अच्छी तरह से चल रहा है पर तुम्हारी तरह करोड़पति किस प्रकार से बन जाएँ। ब्राहम्णी ने उसे पारस पत्थर दिखाया और कहा ये ले पारस पत्थर, इसे लोहे से स्पर्श कर दो तो वह सोने का बन जाता है। जितनी जरूरत हो सोना बना लेना। मैं पारस कल वापिस ले जाऊँगी। भक्त नामदेव जी की पत्नी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और उसने पारस पत्थर को सँदूक में सम्भालकर रख दिया। रात के समय भक्त नामदेव जी जब घर आए तो उनकी पत्नी ने पारस का पत्थर दिखाया और उसका गुण भी बता दिया। भक्त नामदेव जी यह बात सुनकर हँस पड़े और कहने लगे: भली औरत ! पारस से बहुत सोना बनाकर या मायाधारी होकर हम क्या करेंगे। बहुत ज्यादा माया भी अच्छी नहीं होती। जिस प्रकार:

इह संसार से तब ही छूटऊ जउ माइआ नह लपटावउ ।।
माइआ नाम गरभ जोनि का तिह तजि दरसनु पावउ ।।

अर्थ– इस सँसार से तब ही छुटकारा पाएँगे अगर माया में लीन नहीं होंगे। माया का दूसरा नाम गर्भ जोनी है इसको त्यागकर ही परमात्मा के दर्शन की प्राप्ति होगी। यह उपदेश सुनकर उनकी पत्नी खामोश हो गईं। भक्त नामदेव जी ने पारस का पत्थर लिया और उसे कूँऐं में फैंक दिया।  उनकी पत्नी बोली: यह आपने क्या किया जब वह ब्राहम्णी मुझसे पारस माँगेगी तो मैं क्या जवाब दूँगी ? उधर जब ब्राहम्ण अपने घर पर पहुँचा तो उसने अपनी पत्नी से पारस माँगा। पत्नी पहले तो टालमटोल करती रही। लेकिन ब्राहम्ण के कुछ ज्यादा ही टालमटोल करने पर वह कहने लगी कि उसने पारस अपनी एक सहेली को दिया है और अभी जाकर वापिस ले आती हूँ।  ब्राहम्ण क्रोध और फिक्र में आ गया और बोला: मैंने तुझे कितनी बार समझाया था कि पारस किसी को नहीं देना यह बहुमूल्य चीज है और कोई ऐसी चीजें वापिस नहीं करता। ब्राहम्णी भक्त नामदेव जी की पत्नी के पास आकर पारस वापिस माँगने लगी। भक्त नामदेव जी की पत्नी ने कहा: बहिन ! मैं आपके क्षमा चाहती हूँ, आपका पारस तो भक्त नामदेव जी ने कूँऐं में फैंक दिया है। यह सुनकर उस ब्राहम्णी की तो जान ही निकल गई और वह विलाप करती हुई वापिस घर आ गई और सारी वार्त्ता अपने ब्राहम्ण पति का सुनाई। ब्राहम्ण बड़े ही क्रोध में आ गया और अपनी पत्नी के साथ मार-पिटाई करने लगा और फिर भक्त नामदेव जी के घर आ गया वह बड़े ही क्रोध में था। उसने भक्त नामदेव जी से कहा: नामदेव जी ! मेरा पारस लौटा दो भक्त नामदेव जी ने कहा: ब्राहम्ण जी ! आप शाँति रखो और अन्दर आ जाओ। ब्राहम्ण ने बोला: नामदेव जी ! मेरी इतनी बहुमूल्य चीज मुझसे दूर हो गई है और आप शाँति का उपदेश दे रहे हो। भक्त नामदेव जी ने कहा कि: ब्राहम्ण जी ! वो चीज तो अब जा चुकी है, हमने उसे कूँऐं में फैंक दिया है। ब्राहम्ण बड़े क्रोध में बोला कि: नामदेव जी ! कौन मानेगा कि आपने पारस को कूँऐं में फैंका होगा ? भक्त नामदेव जी ने कहा: हे मित्र ! आप ऐसे झूठे माया के पारस का त्याग करो और उस सच्चे पारस यानि परमात्मा का जाप करो। अगर आप इस पारस की छोह प्राप्त कर लोगे तो लाखों पारस आपके चरणों में होंगे। भक्त नामदेव जी का ब्रहम उपदेश सुनकर ब्राहम्ण को ज्ञान हो गया और जब उसने भक्त नामदेव जी कहने पर सड़क से पत्थर के रोड़े उठाए तो उसे वह पारस ही प्रतीत हुए, इस पर वह भक्त नामदेव जी चरणों में गिर पड़ा और हरि सिमरन में जुड़ गया।

नोट: सारी दुनियाँ माया के पीछे भागती फिरती है और माया एकत्रित करने के लिए नये-नये ढँग सोचती है और जाल बिछाती है, उनको यह नहीं पता होता कि मनुष्य जीवन का मनोरथ केवल माया एकत्रित करना नहीं बल्कि असली मनोरथ कुछ ओर ही है।

भई परापति मानुख देहुरीआ ।।
गोबिंद मिलण की एह तेरी बरीआ ।।

अर्थात मनुष्य जन्म जो प्राप्त हुआ है, यह उस परमात्मा के मिलने की बारी है, क्योंकि किसी और बारी में तो चौरासी लाख जूनियों में पड़ जाएगा इसलिए नेक कर्म कर, सभी को एक समान समझ और सबसे ज्यादा जरूरी बात परमात्मा का नाम जप। मूर्ति पूजा, पाखण्ड, कर्मकाण्ड, देवी-देवताओं की पूजा से दूर रह और केवल परमात्मा के नाम के रँग में रँग जा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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