33. मीराबाई की शक्ति
भक्त रविदास जी से उपदेश लेकर मीरा प्रेम से परमात्मा का सिमरन करने लगी। वह वहीं
रहकर सँगत के लिए लँगर तैयार करने के लिए आटा गूँथना, जल भरना, जूठे बर्तन माँजने
आदि की सेवा तन-मन से करने लगी। जब वह समाधि लगाकर बैठती तो, रात-दिन सिमरन करते
हुए ही निकल जाता। मीरा जी के सिमरन की चर्चा घर-घर में होने लगी। गुरू की कुपा से
मन का शीशा साफ हो गया और परमात्मा के साक्षात दर्शन हो गए। इस प्रकार काफी समय काशी
में गुजारकर मीरा अपने माता-पिता के नगर मेड़ की तरफ चल पड़ी। मीरा जी के कपड़े रास्ते
के सफर में बहुत मलीन हो गए थे। रास्ते में एक कुँऐ पर करमांबाई ने मीरा जी के कपड़े
साफ किए। दुपट्टे को एक जगह दाग रह गया था उसने दाग छूटाने का बहुत यत्न किया परन्तु
दाग नहीं छूटा। अंत में करमां ने दाग वाली जगह को अपने मुँह में लेकर अच्छी तरह से
चूसा और गन्दगी को अन्दर गटक लिया। जिस प्रकार एक मछली को, जिसे जल से बाहर निकाल
दिया हो और उसके मुँह में जल डालने से जो जान में जान आ जाती है, वैसे ही वह गन्दे
दाग की गन्दगी अन्दर जाते ही करमां के कपाट खुल गए और उसे तीन लोकों की समझ आ गई।
कहते हैं कि शेरनी का दुध सोने के बर्तन में ही समाता है और धातूओं के बर्तन को
खारकर छेद कर देता है। वैसे ही नाम की शक्ति को कोई महापुरूष ही जानता है। मीरा का अपने मायके में आना : मीरा अपनी यात्रा पूरी करके अपने
माता-पिता के नगर मेड़ में आ गई। सरदार रतन सिँह ने अपनी पुत्री को गले लगाकर प्यार
किया। उसने मीरा से यात्रा के बारे में पूछा तो मीरा ने भक्त रविदास जी के बारे में
सब कुछ ब्यान कर दिया। सब सुनकर सरदार रतन सिँह मन में बहुत प्रसन्न हुआ। मीरा ने
मेड़ नगर में सतसंग की लहर जारी कर दी। सुबह शाम लोग एकत्रित होते। परन्तु इस लहर को
देखकर मीरा का भाई चन्द्रभाग और ससूर राणा साँगा बड़े क्रोधवान हुए। इनको इस बात का
ज्यादा दुख हुआ कि हम हिन्दू राजपूत ऊँची जाति के लोग हैं और हमारी पुत्री ने चमार
को गुरू धारण करके हमारी नाक कटवाई है। इसलिए इसे मार देना ही उचित है। यह मीरा जी
को मारने के लिए युक्ति सोचने लगे। दूसरी तरफ इस सब से अन्जान मीरा जी ने सारे सेवकों
से सलाह करके भक्त रविदास जी को मेड़ में बुलाने के लिए एक पत्र लिखा और सारे सेवकों
की और से प्रार्थना की कि, हे गरीब निवाज सतगुरू जी ! सँगत समेत मेड़ नगर में आने की
किरपा करें। आपके दर्शनों के लिए हजारों श्रद्धालू तरस रहे हैं। इन सबका काशी
पहुँचना मुश्किल है और सेवक चाहते हैं कि हमारे घरों में अपने चरण डालकर उसे पवित्र
किया जाए। इस प्रकार का पत्र लेकर एक सेवक भक्त रविदास जी के चरणों में पहुँचा और
चरण स्पर्श करके समस्त सेवकों और सँगत की प्रेमपत्रिका पेश की।
मीरा को मारने की तैयारियाँ : जब यह खबर मीरा के ससुराल में
पहुँची तो उन्होंने मीरा के मायके में क्रोध भरे पत्र लिखे। मीरा अपने मायके में ही
थी। सारे सँगी रिशतेदार मीरा को समझाने लगे। मीरा की माता ने कहा: देख बच्ची ! हम
ऊँचे खानदान के लोग हैं और ऊँची जाति वाले हैं। चमारों की सँगत हमें शोभा नहीं देती।
रविदास जी के परिवार के सारे लोग मरे हुए पशु खींचकर उनके चमड़े से जूते बनाने का
कार्य करते हैं। हमें तो उन नीचों की छाँव से भी बचना चाहिए। इसलिए तूँ गँगा में
स्नान कर और ब्राहम्णों को पुण्य दान कर। तेरे ससुराल वाले तूझे मारने की सोच रहे
हैं, क्योंकि तूने एक चमार की चेली बनकर अपने परिवार और कुलों का नाम कलँकित किया
है। मीरा जी ने कहा: माता जी ! राम नाम का सिमरन करने से सारे विध्न दूर हो जाते
हैं। जो राम नाम नहीं जपता वो मनुष्य नीच है। आवागमन यानि कि जन्म-मरण के चक्कर में
फसा रहता है। भीलनी, गनका, कुबजां पूतना आदि का परमात्मा ने उद्धार किया है। बाकी
जो मुझे मार देने के बारे में आप सोच रहे हो। मूझे मौत की कोई चिन्ता नहीं, बल्कि
मौत नये जीवन की तबदीली का नाम है। हाँ दुख तो पापी लोगों को होना चाहिए जो मर कर
चौरासी लाख जूनियों में कुत्ते, बिल्ली, पशू आदि देह धरकर दुख भोगते हैं। परमात्मा
की भक्ति करने वाले शरीर को त्यागकर परमात्मा की पुरी में चले जाते है। जहाँ पर दुख
और कलेशों का नाम ही नही, बल्कि सुख ही सुख हैं। माता ने कहा: मीरा ! तूने रविदास
को यहाँ मेड़ नगर में बुलाया है, इससे हमारी और भी हानि होगी। तूँ तीर्थ यात्रा कर आ
और किसी ऊँचे कुल के सन्यासी या ब्राहम्ण को गुरू धारण कर, क्योंकि हम राजपूत हैं
और हमारी इस प्रकार से तो घर-घर में हँसी होगी। अगर तुम आज ही चमार की सँगत से मुख
मोड़ लो तो मैं तुम्हें भाई और ससुर के गुस्से से बचा लूँगी। दुनियाँ तेरा नाम ले-लेकर
निन्दा करती है। मीरा ने मुँह तोड़ उत्तर दिया और कहा: माता जी ! बेशक मेरे तन के
टुकड़े कर दो। मूझे खुशी है कि मैं राम का नाम लेकर जीती हूँ। अगर राम नाम मेरे से
बिछुड़ जाए तो मेरे प्राण निकल जाते हैं। इस राम नाम की पूँजी का मालिक मेरा गुरू
रविदास ही है। उनके अलावा सारे पाखण्डी और भेषधारी हैं। इस प्रकार माँ उसको नहीं
समझा पाई तो उसने मीरा को मार देने का फैसला ही ठीक समझा। एक दिन मीरा को बुखार आ
गया। मीरा को हकिम से जहर लेकर दवाई के बदले में पिलाया गया। मीरा ने एक ही घूँट
में सारा का सारा प्याला पी लिया और लेट गई। भाई, माँ और ससुर खुश थे कि मीरा अब तो
मर ही जाएगी और उनकी जग हँसाई भी खत्म हो जाएगी। पर उनको यह नहीं मालूम था कि नाम
जपने वालों के लिए तो जहर भी अमृत बन जाता है। सिमरन करने वाले महात्मा सदा ही खुश
और अरोग रहते हैं। रात थी सब सो गए। सुबह ब्रहम समय में मीरा जी ने करमां को जगाया
और शौच-स्नान करने के बाद नाम जपने बैठ गई। मीरा की यह शक्ति देखकर पूरा परिवार दँग
रह गया।