SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

17. निँदकों के लिए उपदेश

रविदास जी महाराज जी का पवित्र उपदेश सुनकर राजा-महाराजा भी आने लग गए। तन, मन और धन से सेवा करने के लिए भाँति-भाँति के पदार्थों समेत। भक्त जी ने सबको नाम जपने की युक्ति दान की। शुभ कर्म करने और जनता के साथ न्याय करने की प्रेरणा दी। परन्तु माया को हाथ नहीं लगाया। जो कोई सेवक धन लेकर आता वह भक्त जी उसी समय अनाथों में बाँट देते। मनुष्य में नेकी और बदी दोनों चीजें होती है। अज्ञान मनुष्य अपने आपको सबसे ऊँचा और दूसरे को तूच्छ मात्र समझता है। इसलिए रविदास जी ने ऐसे अहँकारी और निन्दकों के लिए एक शब्द "राग गोंड" में उच्चारण किया:

जे ओहु अठसठि तीर्थ न्हावै ॥ जे ओहु दुआदस सिला पूजावै ॥
जे ओहु कूप तटा देवावै ॥ करै निंद सभ बिरथा जावै ॥१॥
साध का निंदकु कैसे तरै ॥ सरपर जानहु नरक ही परै ॥१॥ रहाउ ॥
जे ओहु ग्रहन करै कुलखेति ॥ अरपै नारि सीगार समेति ॥
सगली सिम्रिति स्रवनी सुनै ॥ करै निंद कवनै नही गुनै ॥२॥
जे ओहु अनिक प्रसाद करावै ॥ भूमि दान सोभा मंडपि पावै ॥
अपना बिगारि बिरांना सांढै ॥ करै निंद बहु जोनी हांढै ॥३॥
निंदा कहा करहु संसारा ॥ निंदक का परगटि पाहारा ॥
निंदकु सोधि साधि बीचारिआ ॥
कहु रविदास पापी नरकि सिधारिआ ॥ ४॥ अंग 875

अर्थ: "(महापुरूषों की निंदा करने वाला अगर अठसठ तीर्थों का भी स्नान कर ले और शिवलिँग की बारह शिलाएँ भी पूज ले। अगर लोगों के लिए कूँआ, तालाब, प्याऊ आदि भी लगवा दे, अगर इतने बड़े दान करके भी निँदा करे तो सब कुछ निष्फल हो जाता है। भला संतों का निँदक किस प्रकार तर सकता है, वह सरपर (जरूर) ही नर्क में जाएगा। अगर वह काशीपुरी में आए या कुरूश्रेत्र के मेले में सारी सिम्रतियाँ कान से सुने कथा के रूप में, पर अगर निँदा करे तो किसी लेखे में नहीं लगता। अगर दाता बनकर जगत के भूखों को भोजन कराए, अगर धरती दान करे, गरीबों को रहने के लिए मकान बनाकर दे दे और अपना काम बिगाड़कर लोगों के काम सवाँरता फिरे, इतना कुछ करके भी अगर वह संतों की निँदा करे तो बेअंत टेढ़ी जूनियों में जाएगा। हे दुनियाँ के लोगों ! निँदा क्यों करते हो, निँदक के कर्मों का फल साफ स्पष्ट है। भक्तों ने अच्छी तरह से शास्त्रों को सोधकर फैसला किया है। रविदास जी कहते हैं कि निँदक पापी नर्क को जाता है।)"

सेवकों की प्रतिज्ञा : भक्त रविदास जी के यह महान और पवित्र उपदेश सुनकर सारे सेवक उनके चरणों पर गिर पड़े और सभी ने प्रतिज्ञा की कि वह कभी भी किसी की निँदा नहीं करेंगे और ना ही सुनेंगे, क्योकि निँदा सुनने वाला भी बराबर का हकदार होता है। जिस प्रकार से चोरी करने वाला और चोरी करवाने वाला बराबर की सजा का हकदार होता है। गुरू अमरदास जी फरमाते हैं:

निंदा भली किसे की नाही मनमुख मुगध करंनि ।।
मुह काले तिन निंदका नरके घोर पवंनि ।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.