53. जोती जोत समाना
कबीर जी के जोती जोत समाने की सूचना उनके मुखी चेले श्री धरम दास की की बाणी से
मिलती है। उनके अनुसार कबीर जी महाराज मघर सुदी एकादशी संवत बिक्रमी 1575 सन 1518
में उनकी आत्मा, परमात्मा में विलीन हो गई यानि कि वह जोती जोत समा गए। अपने अन्तिम
समय में कबीर जी काशी को छोड़कर, मगहर नामक स्थान पर जो कि वहाँ से 15 कोस की दूरी
पर है, चले गए थे। काशी के बारे में पण्डितों ने यह राय कायम की हुई थी कि जो भी
काशी में निवास करता है और जिसकी मुत्यु काशी में होती है वह सीधा स्वर्ग में जाता
है। यह तो अपना उल्लू सीधा करने वाली मनगढँत बात है। कबीर जी इसको पाखण्ड मानकर इसका
खण्डन करते थे और इसी पाखण्ड का व्यवहारिक तौर पर खण्डन करने के लिए वह काशी छोड़कर
मगहर चले गए थे। अपने अन्तिम समय में कबीर जी ने यह बाणी उच्चारण की:
गउड़ी कबीर जी पंचपदे ॥
जिउ जल छोडि बाहरि भइओ मीना ॥
पूरब जनम हउ तप का हीना ॥१॥
अब कहु राम कवन गति मोरी ॥
तजी ले बनारस मति भई थोरी ॥१॥ रहाउ ॥
सगल जनमु सिव पुरी गवाइआ ॥
मरती बार मगहरि उठि आइआ ॥२॥
बहुतु बरस तपु कीआ कासी ॥
मरनु भइआ मगहर की बासी ॥३॥
कासी मगहर सम बीचारी ॥
ओछी भगति कैसे उतरसि पारी ॥४॥
कहु गुर गज सिव सभु को जानै ॥
मुआ कबीरु रमत स्री रामै ॥५॥१५॥ अंग 326
कबीर जी जब काशी से मगहर पहुँचे तो उन्होंने अपने शिष्य को यह
बताया कि वह मगहर में अपनी देह त्यागने आए हैं। नवाब बिजली खान पठान को जब यह मालूम
हुआ कि गुरूदेव अपनी देह त्यागने मगहर में आए हैं तो वह उदास हो गया। बिजली खान ने
कबीर जी की तन, मन और धन से सेवा करनी शुरू कर दी। इस प्रकार से मगहर में कबीर जी
के दिन बीतते गए और जोती जोत समाने का दिन आ गया। कबीर जी ने अपने प्रमियों से बोला
कि कमल के फूल और दो चादरें ले आओ ! हुक्म की पालना हुई। कमल के फूल और चादर लेकर
कबीर जी कमरे में चले गए जिसमें वह ठहरे हुए थे। उन्होंने कमरे में एक चादर नीचे
बिछाई और और लेट गए और दूसरी ऊपर ओढ़ ली। फिर अपने प्रेमियों और श्रद्धालूओं से आखिरी
विदाई ली और हुक्म किया कि इस कमरे का दरवाजा बन्द कर दो, अब हम आखिरी सफर पर जा रहे
हैं और इसमें कोई विघ्न नहीं होना चाहिए। ठीक दोपहर में दरवाजा खोल लेना, हमारी
जीवन यात्रा समाप्त हो चुकी होगी। इस प्रकार भक्त कबीर जी महाराज जोती जोत समा गए।