SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

52. कबीर जी का कल्याण

कबीर जी के मुस्लमान चेलों में शेख अकरवी और मकरवी हुए हैं। वह अपने आपको सूफी फकीर कहते हैं और दूसरी और पक्के मुस्लमान होने का दावा करते हैं, परन्तु बैठे थे झाँसी में किसी पीर साहब की कब्र पर जिसको देखकर कबीर ने उनको बहुत ताड़ लगाई कि आप अच्छे मुस्लमान हो, जो कब्र अर्थात बुत की पूजा करते हो और इस पूजा का खाना खाते हो, कबीर जी ने कहा:

कबीर पूज पूजा धन खाइ, मुस्लमान ना कोइ ।।
कहे कबीर पखंड कांड मैं, कबहूँ भूला ना होइ ।।

कबीर जी ने फिर कहाः भक्तों ! मैंने सब कुछ देख लिया है, हिन्दू की हिन्दूयाई और मुस्लमानों की मुस्लमानी भी, परन्तु मेरे राम जी के मिलाप का रास्ता तो इससे बिल्कुल अलग है। यह हिन्दू और मुस्लमान तो अब निरे पाखण्डी ही रह गए हैं। सुनोः

अरे इन दोइन राज ना पाई ।।
हिन्दूआन की हिन्दूआई देखी, तुरकरन की तुरकाई ।।
कहित कबीर सुनो भाई साधो, कौन राह है पाई ।। ?

कबीर जी ने नास्तिकों को तो बहुत ही झाड़ लगाई है। वह कहते है कि एक बार एक नास्तिक लँगोट कसकर उनसे बहस करने के लिए आ गया। और वह कहने लगा कि: रब है ही नहीं इस सृष्टि की रचना तो अपने आप हो गई। यह सब खेल तो कुदरत का ही है। कबीर जी ने हँसकर पूछा: कि महाश्य ! तो यह बताओ कि इस कुदरत का कादिर कौन है। यह सुनकर वह नास्तिक कोई भी जवाब देने के लायक नहीं रहा। कबीर जी ने बताया कि कुदरत को बनाने वाला कोई ना कोई जरूर है। उसको ही परमात्मा कहते हैं। सब कुछ उसी परमात्मा द्वारा ही बनाया गया है। कबीर जी ने कहा कि यह बताओ कि आकाश किसने बनाया और सितारे किसने चितारे हुए हैं:

ओइ जु दीसहि अंबरि तारे ।।
किनि ओइ चीते चीतन हारे ।। अंग 329

नास्तिक ने कहा: कबीर जी ! मैं यह नहीं मानता कि शरीर और आत्मा दो अलग-अलग चीज हैं। मेरी जाँच के हिसाब से तो शरीर गया और बात खत्म। ना तो कोई आत्मा है और ना ही कोई परमात्मा है। यह सुनकर कबीर जी ने कहा: महाशय जी ! सारे अभिमानी पुरूष इसी प्रकार की बातें करते हैं, परन्तु उनको जब ज्ञान हो जाता है तो वह मान लेते हैं कि आत्मा शरीर से अलग चीज है और कभी मरती नहीं है और आखिर में अपने राम जी की भक्ति के बल पर उसमें अभेद हो जाती है अर्थात मुक्ति की प्राप्ति कर लेती है। आप कहते हो कि शरीर पाँच तत्वों से बना है, परन्तु कभी यह सोचा है कि उसको बनाने वाला कौन है और इसको कर्म कौन देता है।

पंच ततु मिलि काइआ कीनी ततु कहा ते कीनु रे ।।

कबीर जी ने आगे कहा: कि तुम नास्तिक लोग यह भी तो कहते हो कि परमात्मा कहीं नजर नहीं आता। ठीक बात तो यह है कि वह उनको नजर नहीं आता जिनकी ज्ञान की आँखें अभी खुली नहीं हैं। जिनकी ज्ञान की आँखें खुल जाती है, उनको वह परमात्मा एक-एक तिनके में विराजमान नजर आने लगता है। सूरज की हर किरण में उसका वास नजर आता है। आप सोचते होंगे कि परमात्मा अति सूक्ष्म होता है जो कि नजर नहीं आता तो मैं कहूँगा कि क्या आपने कभी बोहड़ के वृक्ष का बीज देखा है, जो कि एक बहुत बड़े और विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेता है। इसी प्रकार मेरे राम जी से विशाल सृष्टि की रचना हुई है और इसमें घटोती और बढ़ोत्तरी होती रहती है। कबीर जी ने कहाः

बटक बीज में रवि रहिओ जा को तीनि लोक बिसथार ।। अंग 340

वह नास्तिक ज्ञान की बातें सुनकर बोलने लगा: कबीर जी ! अगर परमात्मा है तो कृपा करके यह भी बता दें कि उसकी प्राप्ति किस प्रकार होती है ? कबीर जी ने कहा: मेरे राम की प्राप्ति तो उनके चरणों का ध्यान करके उनकी भक्ति करने से होती है। अच्छी सँगत करने से होती है और अहँकार, अभिमान त्यागकर नेकी के रास्ते पर चलने से होती है। जब मनुष्य की किस्मत अच्छी होती है तो साधसंगत का मेल बढ़ता है और उस मेल में से कल्याण का रास्ता अपने आप मिलता है, इस दिल की सफाई पहले होना जरूरी है, क्योंकि दिल साफ नहीं हो तो साध की सँगत भी उसको धोकर साफ नहीं कर सकती। इस संबंध में कबीर जी ने गुरूबाणी कहीः

कबीर संगति साध की दिन दिन दूना हेतु ।।
साकत कारी कांबरी धोए होइ न सेतु ।। अंग 1369

कबीर जी ने आगे कहाः कि हे सज्जन ! केवल माया और मोह का त्याग ही इस कल्याणमयी रास्ते पर चलने के लिए काफी नहीं है। इसलिए तो सारी अकड़ और अभिमान का ख्याल भी मन से निकालना होता है:

कबीर माइआ तजी त किआ भइआ जउ मानु तजिआ नही जाइ ।।
मान मुनी मुनिवर गले मानु सभै कउ खाइ ।। अंग 1372

कबीर जी ने आगे कहा: कि हे भक्त ! अगर भक्ति के रास्ते पर चलते हुए मान अभिमान और अहँकार आ गया तो समझो कि सारे किए कराए पर पानी फिर गया। इसलिए अहँकार से हमेशा बचना चाहिए। जहाँ परमात्मिक ज्ञान आ गया वहाँ पर धर्म है और जहाँ पर झूठ है, वहाँ पर पाप का राज्य होता है। जहाँ लोभ और लालच है, वहाँ काल है और जहाँ पर क्षमा है, वहीं परमात्मा का वास है:

कबीर जहा गिआनु तह धरमु है जहा झूठ तह पापु ।।
जहा लोभु तह कालु है जहा खिमा तह आपि ।। अंग 1372

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.