50. आत्मा अमर है
भक्त कबीर जी ने अपनी बाणी में आत्मा का नाम “मन“ रखा है। बात ठीक ही है कि मन नाम
का कोई अंग शरीर में नहीं है और आत्मा नाम का भी कोई नहीं, इसलिए जिस रूह को श्री
कृष्ण जी आत्मा का नाम देते हैं उसको भक्त कबीर जी मन कहते हैं। एक बार एक डाकू का
नाम किरहा था, वह एक डाका डालते हुए पकड़ा गया। इस डाके में उसने घर के मालिक का
कत्ल ही कर दिया था और बहुत सारे धन और दौलत को लूट लिया था, परन्तु वह उस धन को
लेकर भाग नहीं सका और पकड़ा गया। जब शहर का कोतवाल उसको पकड़कर कोतवाली की तरफ ले जा
रहा था तो कबीर जी की मनोहर बाणी उसके कानों में भी पड़ी, उसने कोतवाल के पास विनती
की कि एक बार कबीर जी के चरणों में माथा टेकने की आज्ञा दे दी जाए। रहम दिल कोतवाल
ने उसकी इस विनती को मान लिया और सिपाहियों के पहरे में हथकड़ियों में जकड़ा हुआ वह
कबीर जी की सँगत में पहुँच गया और उनके चरणों में गिरकर अरज की। वह डाकू बोला: हे महाराज ! इस पापी का भी कल्याण कर दो। कबीर जी
ने कहा: मन में राम जी का नाम बसाओ और बूराईयों से हाथ दूर कर लों कल्याण होगा। अब
वह डाकू राम नाम जपने लगा। परन्तु उसने जो पाप किए थे उनकी सजा तो उसे मिलनी ही थी।
अदालत ने उसे मौत सजा सुनाई और उसे फाँसी पर लटका दिया गया। इसके कुछ दिन बाद एक
दिन कबीर जी अचानक ही अपने कुछ शिष्यों समेत अपने घर से उठ दौड़े। शिष्य हैरान थे कि
आखिर गुरू जी इस तरह क्यों दौडे. चले जा रहे हैं। कबीर जी दरिया गँगा के किनारे
चलते-चलते जँगल में एक स्थान पर पहुँचे, जहाँ पर एक काली कुतिया ने एक काले रँग के
पिल्ले को जन्म दिया था और वह इतने जोर से चीख रहा था कि जिस तरह कहीं पर भाग जाना
चाहता हो। कबीर जी उसकी और इस प्रकार से देखते रहे जैसे किसी प्यारे मित्र की तरफ
देखा जाता है। हैरान होकर कबीर जी के पुत्र संत कमाल जी ने पूछा: पिता जी ! यह क्या
भेद है ? कबीर जी ने हँसकर कहा: क्यों पहचाना नहीं इसको ? यह किरहा डाकू है। पापों
का दण्ड इसने कुतिया के पेट से जन्म लेकर बहुत भोग लिया है। अब इसके दिल में बसे
हुए राम जी के नाम ने इसका कल्याण करना है इसलिए हमारे राम जी ने इसको यहाँ भेजा
है। पिल्ला लगातार चीखे जा रहा था। कबीर जी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ रखा तो उसकी
चीख में भी शान्ति आ गई और उसने तड़पना भी बन्द कर दिया और वह कबीर जी के चरणों में
लेट गया और उसकी आत्मा चौरासी के गेढ़े में से आजाद हो गई, उसकी मुक्ति हो गई। इस
प्रकार कबीर जी ने ना केवल यह साबित कर दिया कि आत्मा अमर है, बल्कि यह भी साबित कर
दिया कि राम जी के चरणों का प्यार पाकर यह आत्मा पाप करम करके भी मुक्ति प्राप्त कर
लेती है। कबीर जी ने कहा कि स्वर्ग और नरक भी यहीं है। जो यहाँ पर नेकी करता है उसे
सुखदायक पुर्नजन्म मिलता है और यदि वह राम नाम भी जपता है और नेकी भी करता है तो
उसकी मुक्ति भी हो जाती है। चूँकि डाकू ने बूरे कर्म किए तो वह फाँसी पर चड़ा और
कुदरत की और से वह फिर से जन्म लेकर कुत्ते की जोनि में आया। हालांकि उसने राम नाम
जपा था इसलिए हमारे उसके सिर पर हाथ रखते ही वह मुक्ति को प्राप्त कर गया।