47. औरत का जादू
कबीर जी मगहर के नबाव बिजली खान पठान को एक साखी सुनाते हुए कहते हैं कि एक बार चार
आदमी एक साथ सफर के लिए चले। पिता था उसके दो पुत्र और एक मित्र था। उनके साथ कोई
भी औरत नहीं थी और वह बड़े प्रेम से एक-दूसरे का भार उठाते हुए चले जा रहे थे, परन्तु
बहुत देर तक यह हालत नहीं रही रास्तें में उनको एक सुन्दर औरत मिल गई। जिसको देखकर
उन चारों के दिल उनके हाथ से निकल गए। सबसे पहले बुढ़े ने कहा: अरे सुनो ! यह
सुन्दरी मेरे लिए ही है, मैं इससे विवाह करूँगा और यह हम सबकी रोटी पकाया करेगी। बड़ा
लड़का बोला: जी नहीं ! यह झूठी बात है, इससे तो मैं विवाह करूँगा। छोटा लड़का बोला:
जी नहीं ! यह तो केवल मेरे ही योग्य है, मैं देख लूँगा कि मेरे बिना इससे कोई दूसरा
विवाह कैसे कर सकता है ? मित्र बोला: कि यह भी खूब रही ! जब पिता और पुत्रों ने एक
ही औरत को एक ही समय काम ही निगाहों से देखा है तो यह तुम्हारे लिए हराम हो गई है
इसलिए तुम इसका ख्याल दिल से निकाल दो, मैं बाहर का आदमी हूँ और इस प्रकार यह मेरे
लिए हराम नहीं हूई इसलिए इसके साथ मुझे ही विवाह कर लेने दो। इस प्रकार की बातों से
इन चारों में जोश और गुस्से भरी बहसबाजी होने लगी। कोई भी उस मनमोहनी सुन्दरी को
छोड़ने को तैयार नहीं हुआ। काफी वाद-विवाद के बाद यह फैसला हुआ कि इस सुन्दरी से ही
पूछ लिया जाए। यह जिसको पसन्द करेगी, वो ही इससे विवाह कर ले और बाकी सारे खुशी से
इस बात को प्रवान कर लें। यह फैसला करके वह चारों उस सुन्दरी के पास गए, जो पास ही
एक वृक्ष की छाया में बैठी थी। उसने चारों को बारी-बारी से आँखे मटका-मटकाकर देखा
तो वह चारों यही सोचने लगे कि वह बस उसको ही प्यार करती है। फिर उन्होंने उस सुन्दरी
से सीधा सवाल किया और कहा कि वह चारों में से किसे पसन्द करती है और किसके साथ
विवाह करेगी ? यह सुनकर उस सुन्दरी ने पहले सिर झूका लिया, फिर उसने आँखों के जादू
के तीर चलाते हुए कहा कि मैं उस आदमी से विवाह करूँगी जो सबसे ज्यादा बहादुर होगा। चारों एक ही साथ बोले: ओ सुन्दरी ! मैं सबसे बहादुर हूँ, मैं
सबसे बहादुर हूँ, मैं सबसे बहादुर हूँ, मैं सबसे बहादुर हूँ। सुन्दरी तिखी
मुस्कराहट के साथ बोली: इस तरह से नहीं जी ! चारों बोले: फिर किस तरह ? सुन्दरी बोली:
कि आप लड़कर दिखाओ ? जो सबको हराकर जीत जाएगा, मैं उससे विवाह कराऊँगी और हमेशा के
लिए उसकी हो जाऊँगी। यह सुनते ही उन चारों ने अपनी-अपनी तलवारें निकाल लीं और
एक-दूसरे पर टूट पड़े। औरत के जादू ने उनको इतना भी भूला दिया था कि उनको इस बात की
भी सुध ना रही कि वह किससे लड़ रहे हैं। वह इतना लड़े कि सुन्दरी के चरणों में ही चारों
के चारों दम तोड़ गए। वह सुन्दरी किसी को नहीं मिली। कबीर जी ने इस साखी को सुनाते
हुए कहा कि इस प्रकार औरत का दामन कभी-कभी आदमी को अपने आप को भूला देता है और वह
किसी स्थान लायक नहीं रहता और खत्म हो जाता है।