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46. नवाब बिजली खान पठान

बिजली खान पठान एक छोटी सी रियासत मगहर का रहीस था और नवाब कहलाता था और बड़ा मुतअसबी और जूनूनी मुस्लमान था और दीन के मसलों में इतना पक्का था कि चाहे सूरज दिन की ब्जाय रात में उदय होने के लिए तैयार हो जाए, पर पह अपना विचार बदलने के लिए तैयार नहीं होता था। वह चाहता था कि सारे सँसार में केवल इस्लाम ही हो और किसी धर्म का नामोनिशान ही बाकी न रह जाए। जब वह किसी हिन्दू के मुस्लमान होने की खबर सुनता तो फूलकर कुप्पा हो जाता था परन्तु जब यह सुनता कि कोई मुस्लमान इस्लामी शराह से उलट कोई बात करता है तो उसके गुस्से की कोई सीमा नहीं होती थी। एक बार भक्तों की एक टोली के साथ कबीर जी कहीं आगे जाते हुए उसके नगर में आ पहुँचे। भक्तों की एक टोली रामानँदीऐ बैरागियों की थी। कबीर जी हालाँकि हर दिखावे के सख्त विरोधी थे, परन्तु इस यात्रा में कबीर जी ने भी तिलक लगाया हुआ था और कँठी बाँधी हुई थी। बैरागियों की इस टोली के मगहर में आने की चर्चा नवाब बिजली खान पठान की हवेली में भी पहुँच गई। उसको किसी ने बताया कि इस टोली में एक मुस्लमान भी है और जिसने तिलक भी लगाया हुआ है और बैरागियों के साथ मिलकर राम नाम का भजन गाता फिरता है तो उसको बड़ी हैरानी और दुख हुआ। वह मुस्लमानों के अलावा बाकी सभी को बेदीन समझता था और जो मुस्लमान बेदीनों के साथ फिरे उसको वह बहुत ही बूरा समझता था। कबीर जी के बारे में जानकारी प्राप्त करके उसको बहुत ही गुस्सा आया और उसने अपने एक नौकर को बुलाकर कहा कि जल्दी जाओ ओर बैरागियों की मण्डली में से कबीर नाम के आदमी को बुला लाओ, जो मुस्लमान होकर तिलक लगाकर फिर रहा है। नौकर जी हजूर कहकर चला गया और थोड़ी देर के बाद ही वह अकेला आ गया। उसने आकर कहा कि कबीर जी ने आने से इन्कार कर दिया है। यह सुनकर नवाब बड़ा हैरान हुआ और कहने लगा कि कोई बात नहीं मैं आप जाकर उसको देखता हूँ। उसने अपने कई आदमियों को साथ लिया और बैरागी साधूओं के डेरे पर जा पहुँचा। वह एक तरफ खड़े होकर उनके द्वारा गाए जा रहे भजनों को सुनने लग गया। कबीर जी उसकी तरफ देखकर हँस पड़े और उच्चारण करने लगे:

कबीर जी ने जो उच्चारण किया उसमें वह हिन्दू और मुस्लमान को एक ही बता रहे थे और कह रहे थे कि हिन्दू और मुस्लमान एक ही खुदा की सन्तान हैं। कबीर जी के नूरानी चेहरे का रौब उस पर कुछ इस प्रकार से बैठ गया कि वह गुस्ताखी करने का हौसला ही नही कर पा रहा था। लम्बी सोच के बाद उसने बात करने का फैसला किया। वह कबीर जी से कहने लगा: हजरत जी ! मैं आपके मिलने आया था, परन्तु आपके यह ख्याल सुनकर मुझे बड़ी हैरानी और दुख हुआ। कबीर जी ने कहा: राम के भक्त तो कभी भी किसी का दिल दुखाने वाली बात नहीं करते, फिर आप किस कारण से हैरान और दुखी हो गए ? नवाब बोला: आप सारे मजहब को एक जैसा बताते हो और सबकी प्रशँसा करते हो। क्या यह ठीक है कबीर जी ने कहा: नवाब साहब ! तो क्या ठीक है ? नवाब बड़े जोर से बोला: कबीर जी ! सच तो यह है कि सँसार में केवल एक ही मजहब ठीक है और वह है इस्लाम। कबीर जी ने उससे प्रश्न किया: नवाब साहब ! अगर इस्लाम की सच्चा है तो झूठा कौन है ? नवाब बिजली खान: कबीर जी ! यह हिन्दूओं का मजहब झूठा है। कबीर जी: नवाब ! तुम भूलते हो। ठीक बात यह है कि खुदा एक ही है अर्थात मुस्लमान उसको खुदा या अल्लाह कह लेते हैं और हिन्दू ईश्वर या राम कह लेते हैं। केवल अलग-अलग जुबानों से एक ही हस्ती के अलग-अलग नाम लेने से वह अलग कैसे हो गया। नवाब ने कहा: कबीर साहिब जी ! यह ठीक है कि खुदा एक ही है। परन्तु उसकी मान्यता के लिए केवल मुस्लमानी ढँग ही ठीक है, हिन्दूओं का ढँग तो जहालत भरा है। यह सुनकर कबीर जी ने हँसकर कहा: शुक्र है कि तुम इतनी जल्दी मान गए कि खुदा एक ही है। यह और समझ लो कि वो आप एक है और उसके नाम अनेक हैं। रह गई बात ढँग और तरीके की। सो तरीका सभी का अलग-अलग ही होता है, अगर दो सगे भाई भी हों तो भी उनका एक ही काम को करने का तरीका अलग-अलग ही होगा। एक किसी तरीके से करेगा और दूसरा दूसरे तरीके से और दोनों ही अपने-अपने तरीके को अच्छा समझेंगे। काम तो दोनों ने ही ठीक ही किया है, भले ही तरीका अलग-अलग है, तो यह बताओं कि यह कहाँ तक ठीक है कि एक का तरीका ठीक है और दूसरे का गल्त है। यदि वह इस बात पर लड़ पड़ें और एक-दूसरे को अपना तरीका धारण करने के लिए मजबूर करें तो यह इन्साफ वाली बात नहीं होगी और इसका नतीजा भी अच्छा नहीं निकलेगा।

अब यह हिन्दू मुस्लमान की बात ले लो। मुस्लमान को उठक-बैठक वाली निमाज पसँद है और हिन्दू आसन पर जमकर पूजा पाठ करता है, इस हालत में अगर आप हिन्दू के इस ढँग को झूठा कहोगे तो हिन्दू को यह हक नहीं होगा कि वह भी आपकी निमाज की उठक-बैठक को बूरा और झूठा कह दें। फिर इसका नतीजा खून-खराबे के बिना और क्या होगा ? इसलिए जब निशाना अल्लाह उर्फ राम जी की प्राप्ति है तो एक-दूसरे के मजहब को बूरा नहीं कहना चाहिए, बल्कि सत्कारना और एक-दूसरे के धर्म का आदर करना चाहिए ताकि सभी प्रेम के पक्के धागे में बँध जाएँ। मुस्लमान धर्म अच्छा है तो हिन्दू धर्म भी बूरा नहीं है, वह भी अच्छा है और दोनों में गुण हैं तो अवगुण भी हैं, परन्तु यह अवगुण कुछ लोगों की मान्यताओं की वजह से आ गए हैं। जैसे हिन्दू धर्म में गुण यह है कि राम का नाम जपना। और अवगुण हैं कि मूर्ति पूजा करना, व्रत रखना कर्मकाण्ड करना आदि। मुस्लिम धर्म में गुण हैं कि वह अल्लाह का नाम जपते हैं। अवगुण हैं रोजे रखना, बकरों की बलि देना और यह कहना कि खुदा केवल पश्चिम में ही है। परन्तु इन अवगुणों को समझाकर दूर किया जा सकता है। कबीर जी ने बाणी उच्चारण की:

पण्डत वेद पुरान पड़े और मुलां पड़े कुराना ।।
कह कबीर नरक दोइ जाए जो ना राम पछाना ।।

नबाव कितनी ही देर तक सिर पकड़कर बैठा रहा और फिर जोर से बोला: हजरत ! आप मुस्लमान हो और मुस्लमान होकर इस्लाम की ब्जाय हिन्दू धर्म की बढ़ाई करना आपको बिल्कुल शोभा नहीं देती। सोचो तो सही मुस्लमान क्या कहेंगे ? कबीर जी ने कहा: नवाब साहब ! मैं किसी को ना तो अच्छा कह रहा हूँ और ना ही किसी को बूरा। मेरी नजरों में सभी एक समान हैं सभी बन्दे एक ही अल्लाह ताला के पुत्र और पुत्री हैं और खुदा के घर में उनमें कोई भी धर्म का बँटवारा नही डाला गया। ऐसा बँटवारा डालने वाले खुदा के गुनहगार साबित होते हैं। अगर खुदा को याद करने का ढँग अलग-अलग हैं। बाकी मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है कि कोई क्या कहेगा ? नवाब ने प्रभावित होकर कहा: हजरत ! यह बताओ कि आप कौन हैं ? यहाँ पर किस लिए आए हैं ? बहुत ही अजीब सी बातें करते हो आप ? कबीर ने कहा: नवाब साहब जी ! लोग मुझे कबीर कहते हैं, यहाँ पर मैं सोए हुए लोगों को जगाने और भूले हुओं को सही राह पर दिखाने के लिए आया हूँ। बिजली खान ने कहा: कबीर जी ! कौन सोया हुआ है ? और कौन भूला ? कबीर जी ने कहा: नवाब बिजली खान जी ! तुम ही सोए और भूले हूए हो और तुम्हें ही जगाने और सही राह दिखाने के लिए मैं यहाँ पर आया हूँ। नवाब ने हैरानी से पूछा: कबीर जी ! भूला हुआ इन्सान किस हालत को देखकर समझा जा सकता है ? कबीर जी: नवाब साहब ! औरत को देखकर, बाल-बच्चे के बीच बैठकर, अहँकार से और विद्या के अभिमान से ऐश के सामान से, मजहब को गल्त समझने से और धन के लालच से। इसके अलावा और कई कारण भुलने के हैं। बिजली खान ने अब नम्रता से कहा: हजरत साईं ! यह बातें तो आपकी ठीक प्रतीत होती हैं, परन्तु कृपा करके इनकी व्याख्या भी करोगे ? कबीर जी ने फरमाया: नवाब साहब जी ! क्यों नही, यही तो मेरा काम है। अब ध्यान से सुनो– भूल और भ्रम की जड़ मनुष्य का अपने आप को भूल जाना है। जब वह अपनी असलियत और अपनी हकीकत से बेखबर हो जाता है, तो उसकी जो हालत होती है उसको ही भूल कहते हैं और यह भूल अपने साथ मुसीबत का समान लेकर आती है और भयानक और खतरनाक साबित होती है। अब थोड़ा विस्तार से सुन लो– औरत की सूरत का जादू आदमी पर हमेशा असर डालता है और यह आप जानते ही हैं। औरत का मूँह देखकर आदमी माता-पिता को भूल जाता है और पुत्रों वाले फर्ज को भूल जाता है। भाई को भाई और मित्र को मित्र नहीं मानता और अपनी असलियत ही भूल जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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