45. परमात्मा कभी जन्म नहीं लेता
अन्य सभी भक्तों और गुरूओं जी तरह से कबीर जी ने भी यहीं कहा कि परमात्मा कभी जन्म
नहीं लेता। कबीर जी के साथ जब भी कभी इस बात पर चर्चा चलती तो वह यही कहते कि,
परमात्मा को एक खास रूप में जन्म लेकर आने की क्या आवश्यकता है ? जबकि वह सरब
व्यापक है और जहाँ चाहे और जो चाहे उसकी मन की कल्पना के साथ हो जाता है। कहा जाता
है कि परमात्मा पापियों को दण्ड देने के लिए सँसार में अवतार धरकर आता है। यह धारणा
भी गल्त है क्योंकि वह इस प्रकार से अवतार धरकर क्यो आने लगा जबकि वह मन की कल्पना
से ही पापियों का सर्वनाश कर सकता है। वह तो किसी को प्रेरित करके या उसे अपनी शक्ति
देकर भेज देता है। कबीर जी कहते हैं कि जिन महापुरूषों ने दुष्टों को दण्ड देकर
धर्म की रक्षा की, उनको परमात्मा या परमात्मा का अवतार कहना भारी भूल है। परमात्मा
न तो जन्म लेता है और ना ही मरता है। वह तो चौरासी के चक्कर से मुक्त और ऊपर है। वह
रचना करता है और तमाशा देखता है। वह आप इसमें किस प्रकार से फँस सकता है जो कि अपने
भक्तों की चौरासी काटकर उनको मुक्ति देकर अपने में अभेद कर लेता है। औरों को मुक्ति
देने वाला आप मुक्ति के चक्कर में फँस जाए यह कैसे हो सकता है ? यह बात कोई ज्ञानी
पुरूष कभी भी नहीं करता। इसलिए ईश्वर का अवतार किसी को नहीं कहो, क्योंकि ऐसा कहकर
आप महापुरूषों का अपमान करते हो। राम जी अर्थात सरब व्यापक परमात्मा केवल एक ही है
और जो महापुरूष इस सँसार में आते हैं वह सभी उसके भक्त हैं, उसके चरणों के सेवक
हैं। अपनी बाणी में कबीर जी ने अवतार पूजा का खण्डन करते हूए बाणी कही:
गउड़ी ॥
लख चउरासीह जीअ जोनि महि भ्रमत नंदु बहु थाको रे ॥
भगति हेति अवतारु लीओ है भागु बडो बपुरा को रे ॥१॥
तुम्ह जु कहत हउ नंद को नंदनु नंद सु नंदनु का को रे ॥
धरनि अकासु दसो दिस नाही तब इहु नंदु कहा थो रे ॥ १॥ रहाउ ॥
संकटि नही परै जोनि नही आवै नामु निरंजन जा को रे ॥
कबीर को सुआमी ऐसो ठाकुरु जा कै माई न बापो रे ॥२॥ अंग 338