43. भूखे भगत ना कीजै
भक्त कबीर जी के घर पर कभी-कभी गरीबी का वार इतना तेज हो जाया करता था कि उनके घर
पर चूल्हा भी नहीं जलता था। एक बार ऐसी ही हालत हो गई। कबीर जी के पुत्र संत कमाल
जी ने साखी सुनाते हुए कहा– परिवार वाले सारे ही रात से भूखे थे। सुबह मैं कुछ लेने
के लिए निकला परन्तु जेब में पैसे नहीं थे। दोपहर तक मैं इधर-उधर फिरा। हारकर गँगा
किनारे एक वृक्ष की छाँव में नीचे चादर बिछाकर लेट गया और मुझे नींद आ गई। उधर घर
पर कुछ संतों ने आकर डेरा लगा लिया। राम जी की कृपा से वो भी दो दिनों से भूखे थे।
इधर जब उन्होंने चूल्हा ठण्डा देखा तो उनको रोटी के लिए कुछ कहने का हौंसला नहीं
हुआ। तो ज्ञान गोष्ठी के लिए सतसंग पर जोर देने लगे। पर ध्यान उनका रोटी पर ही था।
उनकी और अपनी हालत का अनुभव करके उस समय पिता कबीर जी ने बाणी उच्चारण की:
रागु सोरठि ।।
भूखे भगति न कीजै ॥ यह माला अपनी लीजै ॥
हउ मांगउ संतन रेना ॥ मै नाही किसी का देना ॥१॥
माधो कैसी बनै तुम संगे ॥ आपि न देहु त लेवउ मंगे ॥ रहाउ ॥
दुइ सेर मांगउ चूना ॥ पाउ घीउ संगि लूना ॥
अध सेरु मांगउ दाले ॥ मो कउ दोनउ वखत जिवाले ॥२॥
खाट मांगउ चउपाई ॥ सिरहाना अवर तुलाई ॥
ऊपर कउ मांगउ खींधा ॥ तेरी भगति करै जनु थींधा ॥३॥
मै नाही कीता लबो ॥ इकु नाउ तेरा मै फबो ॥
कहि कबीर मनु मानिआ ॥ मनु मानिआ तउ हरि जानिआ ॥४॥११॥ अंग 656
आँतरिक अर्थ: कबीर जी महाराज के इस शब्द का आँतरिक भाव पहले
आत्मा और फिर परमात्मा है। कबीर जी अपने परमात्मा राम जी से कहते हैं कि भूखे भक्ति
नही होती और इसकी आस भी न रखो, ये पड़ी है तेरी माला, उठा ले। हम संतों की चरण धूल
माँगते हैं किसी का कर्जा नहीं देना। क्या है तूँ मेरा राम, जो मेरे घर पर आए हुए
संतों को भी भूखा रख रहा है। इस हालत में मेरे राम जी यह बताओ कि तुमसे मेरी निभेगी
कैसे ? फिर आप ही अगली लाइन में कबीर जी कहते हैं– निभेगी भला किस तरह नहीं, जब तूँ
आप ही नहीं देगा तो हम माँग के ले लेंगे और इस तरह तो जरूर निभ जायेगी। मैं कोई
बहुत तो नहीं माँगता केवल दो सेर आटा माँगता हूँ, एक पाव घी और थोड़ा सा नमक माँगता
हूँ। बस इसके साथ आधा सेर दाल दे दो जिससे दोनों समय के जीवन का गुजारा हो जाएगा।
परन्तु यह मत समझ ले कि कोई और जरूरत बाकी नहीं रह गई है। चारपाई चाहिए, सिरहाना
चाहिए, तुलाई चाहिए और ऊपर रजाई भी दे, मेरे प्यारे राम जी ! यह मैं इसलिए माँगता
हूँ ताकि तेरी भक्ति मैं आराम से कर सकूँ। मैं कोई लोभ नहीं करता, मुझे तो बस तेरा
नाम ही अच्छा लगता है और वही चाहिए। कबीर जी कहते हैं। हे मेरे राम ! मन इस प्रकार
से ही मानता है और जब मन मान जाता है तो हे राम जी ! तुझे पा लेता हूँ अर्थात मन
तेरी भक्ति में लीन हो जाता है। इस शब्द के माध्यम से कबीर जी ने अपने राम से खूब
शिकायतें की हैं।
संत कमाल जी ने अपने पिता कबीर जी महाराज का यह शब्द संगतों को
सुनाया, उसके अर्थ किए और फिर आगे सुनाने लगे– यह तो आप पहले ही सुन चुके हो कि मैं
एक वृक्ष की छाँव में गँगा किनारे पर सो गया था। मेरी आँखे तब खुलीं, जब किसी ने
मुझे उठाया तो मैं क्या देखता हूँ कि एक सुन्दर लिबास वाला आदमी मेरे सामने खड़ा था,
मैं उठकर बैठा और पूछा कि मुझसे आपको क्या काम है ? उसने हँसकर कहा कि मैं काशी के
राजा का दीवान हूँ और राजा ने मुझ तुम्हारे पास भेजा है। मैं तुम्हारे घर पर ही जा
रहा था, परन्तु तुम्हें यहाँ पर देखकर रूक गया। मैंने पूछा: दीवान जी ! आपको क्या
काम है ? दीवान बोला: कमाल जी ! बात यह है कि मैं कल पिछले कागज पढ़ रहा था तो कबीर
जी का राजा जी के पास पाँच सौ रूपया जमा निकलता है, वहीं देने आया था यह लो और घर
ले जाओ। उसने यह कहकर रूपयों वाली थैली मेरे पैरों में फैंक दी। मैं खुशी और हैरानी
से थैली की तरफ झूका और उसको उठाकर जैसे ही उधर देखा तो वह दीवान जी गायब थे। मुझे
इस चमत्कार की कोई समझ नहीं आ रही थी कि काशी के राजा के पास हमारे कोई रूपये जमा
हो सकते हैं। फिर मैंने विचार किया कि शायद किसी और के रूपये गल्ती से मुझे दे दिये
हैं। यह सोचकर मैं राज दरबार की तरफ चल दिया और दीवान साहिब के पास पहूँचा। परन्तु
वहाँ पर तो दीवान जी एक बूजुर्ग थे। जब मैंने उन्हें यह बात बताई तो उन्होंने सारे
कागजों को फैलाकर और उन्हें देखकर कहा कि कबीर नाम से हमारे यहाँ पर किसी की भी रकम
जमा नहीं है और ना ही हमने कोई रकम वापिस दी है। उस हुलिये का आदमी भी यहाँ पर कोई
नहीं है जो आपने ब्यान किया है। दीवान जी ने कहा कि लगता है कि कबीर जी का अपने राम
से आजकल कुछ ज्यादा ही गहरा रिशता हो गया है। उसके रिशतेदार ने ही यह खेचल की होगी।
आप इसे लेकर घर पर जाऐं। उसकी यह बात सुनकर संत कमाल जी ने बताया कि वह उसी दिन
बाजार गए। सौ रूपये का राशन खरीदा और एक बैलगाड़ी पर रखा और घर पर आकर उतरवाकर बाकी
के चार सौ रूपये की थैली कबीर जी के सामने रखकर बाहर से आए हुए संत जनों के सामने
ही सारी बात बता दी। यह सुनकर कबीर जी ने हँसकर संतों से कहा: क्यों देखा ! मेरे
राम का कमाल ! मेरा कितना ख्याल रखता है वह मेरी जरूरतों को सुनता है और मेरे द्वारा
की गई शिकायतों को सुनता भी है और जल्दी से माँगें भी पूरी कर देता है। उसे अपनी
भक्ती जो करवानी है। कबीर जी की बात सुनकर सारे संत धन्य ! धन्य ! धन्य करने लगे और
उसी समय लँगर की तैयारी शुरू हो गई और जल्दी ही सब कुछ बनकर तैयार हो गया। पहले संतों
ने लँगर खाया और फिर हमारे पूरे परिवार ने खाया।