40. राजा मेघ सिंघ
कबीर जी नेकी की कथा सुनाते हुए कह रहे थे– "मारवाड़ के समीप मेघपुरी नाम की एक छोटी
सी रियासत और मेघ सिंघ नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन वह शिकार को गया तो उसने
झाड़ियों में कुछ ही महीने का एक छोटा सा बच्चा रोते हुए देखा। बच्चे की पोशाक बड़ी
सुन्दर थी और उसके गले में एक बड़ा सा ताबीज पड़ा हुआ था। राजा उस बच्चे को अपने महल
में ले आया और राजकुमारों की तरह से उसका पालन-पौषण करने लगा। दो साल बाद उस राजा
के घर में एक राजकुमारी ने जन्म लिया। वह चाँद जैसी सुन्दर थी। इन दोनों बच्चों का
एक साथ पालन होने लगा। राजकुमारी का नाम सरूप कुमारी और उस लड़के का नाम राजा और रानी
ने बहादुर सिंघ रख दिया। सोलह साल बीत गए। बहादुर सिंघ और सरूप कुमारी का आपस में
बड़ा प्यार हो गया। रानी चाहती थी कि दोनों का आपस में विवाह कर दिया जाए, परन्तु
राजा ने एक पड़ौसी रियासत के राजा के साथ सरूप कुमारी का विवाह करने का वचन किया हुआ
था इस बात का राजा के बिना किसी को भी पता नहीं था। फिर जब राजा को बहादुर सिंघ और
सरूप कुमारी के प्रेम का पता लगा तो उसने बहादुर सिंघ को बुला लिया और कहा– बेटा !
सरूप कुमारी तेरी बहिन है उसको भाईयों जैसा प्यार दिया कर। उसका विवाह मैं किसी ओर
के साथ कर रहा हूँ। यह सुनकर बहादुर सिंघ उदास हुआ और बोला– पिता जी ! मैं सरूप
कुमारी को ओर तरह का प्यार करता हूँ, परन्तु आपके हुक्म की पालना भी जरूरी है।
इसलिए आप मूझे यहाँ से जाने की आज्ञा दें। राजा ने सोचा कि इसकी बात ठीक है। फिर अब यह जवान भी हो चुका है
इसको दूनियाँ की हवा भी लगनी चाहिए। उसने उसको जाने की आज्ञा दे दी और जाने के पहले
खर्चे के लिए सौ मोहरें और वह ताबीज भी दे दिया जो राजा को बहादुर सिंघ के गले से
बचपन में मिला था। राजा मेघ सिंघ का पिता जैसा व्यवहार देखकर बहादुर सिंघ को बहुत
खुशी हुई और वह रानी और राजकुमारी सरूप कुमारी को मिले बिना ही शहर और राज्य से
बाहर चला गया। बहादुर सिंघ के चले जाने के बाद जल्दी ही राजा मेघ सिंघ के बुरे दिन
आ गए। एक बड़ी रियासत भीमगढ़ के राजा ने मेघ सिंघ पर चड़ाई कर दी और वह राजा भी हमलावर
के साथ मिल गया जिसके साथ राजा मेघ सिंघ ने अपनी लड़की राजकुमारी सरूप के विवाह का
वचन दिया हुआ था। मेघ सिंघ ने हमलावर का बड़ी ही बहादुरी से मुकाबला किया और
राजकुमारी के उस मँगेतर को सजा देने के लिए पहली ही झड़प में उसका सिर उतार लिया
परन्तु वैरी की ताकत ज्यादा होने के कारण युद्ध हार गया और रानी और राजकुमारी सरूप
समेत कैदी बन गया। राजा भीम सिंघ उनको कैद करके भीमगढ़ ले गया। कुछ दिन किले में कैद
रखा और फिर तीनों को कत्ल करने का हुक्म दे दिया। राजा मेघ सिंघ उसकी रानी और
राजकुमारी को किले में से निकालकर कत्लगाह में लाया गया। जल्लाद राजा की प्रतीक्षा
कर रहे थे। राजा का हाथी कत्लगाह के पास आकर बैठा और राजा और उसका पुत्र कत्लगाह
में आ पहुँचे। इस समय कुदरत का एक चमत्कार हुआ। राजा भीम सिंघ जल्लादों को तलवार
चलाने के लिए इशारा करने ही वाला था कि राजकुमार ने ये कत्ल नहीं हो सकते कहकर उवने
अपने पिता जी का हाथ पकड़ लिया और चीखकर राजा से कहा कि यहीं तो हैं मेरे प्राण दाता।
राजा भीम सिंघ रूक गया। राजकुमार ने दौड़कर मेघ सिंघ को गले से
लगाया और फिर उसने तीनों को बन्धन मुक्त कर दिया। राजा मेघ सिंघ मुक्ती दाता के रूप
में बहादुर सिंघ को देखकर बेहद हैरान और उससे भी ज्यादा खुश हुए। जल्लाद इशारा पाकर
चले गए। बहादुर सिंघ ने अपने पिता को मेघ सिंघ और उसके परिवार की नेकी की सारी कहानी
सुनाई कि किस प्रकार उन्होंने उसका पालन-पौषण किया और फिर किस प्रकार मोहरें देकर
विदा किया। फिर उसने राजा मेघ सिंघ को बताया कि उस ताबीज में से एक चिट्ठी निकली
थी, जिसे पढ़कर उसे अपने भीमगढ़ का राजकुमार होने का पता चला। पिता जी मुझे ज्योतिषियों
के कहने पर जँगल में छोड़ आए थे, उन्होंने बताया था कि पिता-पुत्र का मिलाप 16 साल
बाद होगा। जब मैं यहाँ पर पहुँचा तो मेरा शानदार स्वागत हुआ और पिता जी ने मुझे छाती
से लगाकर प्यार किया। यह भेद खुलने पर राजा भीम सिंघ ने ना केवल राजा मेघ सिंघ और
उसके परिवार को आजाद कर दिया बल्कि उनका राज-पाट भी वापिस कर दिया और कुछ दिन उनको
अपने महलों में रखकर जी भरकर उनकी सेवा की और फिर बहुत सारा धन, दौलत, हाथी, घोड़े
और नौकर-चाकर देकर विदा किया और कुछ समय बाद राजकुमार बहादुर सिंघ और राजकुमारी
सरूप का विवाह कर दिया गया।" कबीर जी ने कहा: इस प्रकार नेकी का फल राजा मेघ सिंघ
को मिला। अगर उसने नेकी नहीं की होती तो जरूर अपनी रानी और राजकुमारी समेत कत्ल हो
जाता।