SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

28. वेश्या का पार उतारा

कहते हैं कि महापुरूषों का मिलाप जीवन के बिगड़े हुए राहों को भी आँख के झपकने में ही सुधार देता है। सँसार में इस प्रकार की बहुत सी मिसालें मिलती हैं और कबीर साहिब जी के जीवन में भी इस प्रकार की बहुत सी घटनाएँ आती हैं। इस प्रकार की एक घटना इस प्रकार है: शहर में एक नई वेश्वा आई हुई थी। चढ़ती जवानी की जवान वेश्वा। वह इतनी सुन्दर थी कि उसक मुख से निगाह नहीं टिकती थी। शायद जीवन की मजबूरियों ने उसे हुस्न के बाजार की खिड़की में लाकर बिठा दिया था। एक दिन कबीर जी उसकी खिड़की के सामने आ खड़े हुए और उसके हसीन चेहरे की तरफ देखना शुरू कर दिया। सुबह का समय था वह श्रँगार करके ही खिड़की पर बैठी थी। वेश्वा और कबीर जी दोनों एक-दूसरे को टिक-टिकी लगाकर देखते रहे। दोनों की जूबानें बन्द रही। आखिर वेश्वा ने आवाज मारी: फकीर साईं ! ऊपर आ जाओ। कबीर जी तेजी के साथ सिढ़ियाँ चढ़ते हुए उसके सामने जाकर खड़े हो गए। एक संत महात्मा को पूरन रूप में देखकर वेश्वा के दिल का इन्सानी जजबा कुछ जागा। उसने सोचा– आखिर हम वेश्याओं का क्या यही काम रह गया है कि हम अमृत में जहर घोलें और पवित्र रूहों को अपवित्र करें। उसने कबीर जी से पूछा: आप यहाँ क्यों आये हैं ? कबीर जी ने इस सवाल का उत्तर ऐसी मुस्कराट से दिया कि जिसके गलत अर्थ लगाकर वेश्वा फिर बोली, आप मुझे प्रभू की भक्ति वाले लगते हो। आप मेरे हुस्न को देखकर मेरे शरीर से दो घड़ियों के लिए मन बहलाने आ गए हो। मैं आपका स्वागत करती हूँ। परन्तु जानते हो इसका क्या अंत होगा ? आपको पता होना चाहिए कि मेरे शरीर में एक ऐसा जहर भरा हुआ है। जो आपकी प्रभू भक्त को डसकर इसकी मौत कर देगा। उफ ! मैं यह क्या कहे जा रही हूँ। आप मेरे आज के पहले ग्राहक हो। ग्राहक को वापिस भेजना दुकानदारी के असूलों के खिलाफ है। आ जाओ और उसने दूसरे कमरे में बिछे हुए पलँग की तरफ इशारा कर दिया और कहा, आराम से बैठ जाओ। परन्तु जब कबीर जी ने उसे पुत्री कहा तो वह चौंक गई। कबीर जी ने कहा: पुत्री ! मुझे तेरे हुस्न से कोई वास्ता नहीं। मैं तो केवल उस कुदरत की कारीगरी को देखने के लिए यहाँ तक पहुँच गया हूँ कि वह इतनी सुन्दर तस्वीर बनाता है और जो हुस्न राजमहलों में राजाओं की पूजा का हक होता है। उसे दो-दो पैसों में बिकने के लिए गन्दी मोरी में रख देता है। उठ अभागन पुत्री। यह कहते हुए कबीर जी की आँखों में से आँसू निकल आए और हुस्नमती वेश्वा भी रोने लग गई। उसने जोर से कबीर जी के पैर पकड़ लिए और बोली: महाराज ! बेटी कहा है, तो बेटी बनाए रखो, पिता जी, मुझे इस नरक कुण्ड में से निकालकर ले जाओ। मैं यहाँ पर कभी भी नहीं आऊँगी। कबीर जी उसे लेकर नीचे उतर आए। पुत्रीयों जैसे उसे कई महीने तक अपने घर पर ही रखा और फिर उसकी एक सेवक से शादी कर दी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.