24. राम जी भण्डारी हैं
कबीर जी हर समय राम राम करते रहते थे और कामकाज नहीं करते थे, तब उनकी माता जी ने
उनसे कहा: बेटा जब तुने बुनना-तनना छोड़ ही दिया है तो यह सोच कि पैसा कहाँ से आयेगा
और परिवार कैसे चलेगा।
मुसि मुसि रोवै कबीर की माई ॥
ए बारिक कैसे जीवहि रघुराई ॥१॥
तनना बुनना सभु तजिओ है कबीर ॥
हरि का नामु लिखि लीओ सरीर ॥१॥ रहाउ ॥ अंग 524
माता जी को चुप कराते हुए कबीर जी ने अपनी मजबूरी इस प्रकार
ब्यान की:
जब लगु तागा बाहउ बेही ॥
तब लगु बिसरै रामु सनेही ॥२॥
ओछी मति मेरी जाति जुलाहा ॥
हरि का नामु लहिओ मै लाहा ॥३॥
कहत कबीर सुनहु मेरी माई ॥
हमरा इन का दाता एकु रघुराई ॥४॥२॥ अंग 524
अर्थ– माता यह समझ, जब मुझ नीच जुलाहे को राम मिल गया है तो मेरी
लिव इससे लग गई है। मैं जब नली मुँह में डालकर फूँक मारकर धागा बाहर निकालता हूँ तो
मेरी राम से लगी लिव टूट जाती है और राम नाम की याद बिना साँस व्यर्थ चली जाती है।
बाकी रही तेरी चिन्ता कि खाने के लिए कहाँ से आएगा। तो ये बे-अर्थ है। मेरा, आपका
और सबको देने वाला स्वामी मेरा राम ही है। जब इन्सान, इन्सान से काम लेकर मजदूरी
देता है तो मेरा राम क्यों नहीं मुझे देगा कि जिसका लड़ मैंने हमेशा के लिए पकड़ लिया
है। इन ज्ञान की बातों से भी कबीर जी की माता का भरोसा नहीं बड़ा। उसने कहा: कि बेटा
! मैं तेरे राम को नहीं जानती। मैं तो इतना जानती हूँ कि अगर तूँ कपड़ा नहीं बुनेगा
तो पैसे नहीं आएँगे और रोटी नहीं मिलेगी और हम सबको भूखे मरना पड़ेगा। तूँ कहता है
कि तेरा राम भण्डारी है। परन्तु उसका भण्डार अभी तक किसी ने देखा नहीं। कबीर जी ने
कहा: माता जी ! अगर आप मेरे राम पर भरोसा करो तो उसका भण्डारा आप भी देख सकती हो।
कबीर जी ने अपनी माता को सब्र करने के लिए कहा। परन्तु उसका मन शान्त नहीं हुआ बल्कि
उसका दुख और सँताप ओर बढ़ गया। उसने कड़ककर कहा: अरे ओ निखट्टू ! तेरी बातें मेरी समझ
में नहीं आती। तूँ इधर अपने भण्डारी राम के गुण गा रहा है और उधर रात को पकाने के
लिए घर में मुट्ठी भर आटा भी नहीं है। कबीर जी माता की यह बात सुनकर चुप हो गये और
और आँखें बँद करके अपने राम जी के साथ लिव जोड़ ली। माता पहली तरह ही कलपती रही और
रोती रही। ऐसा लगता था कि वह बिल्कुल ही निराश हो चुकी है और उसे आशा ही कोई किरण
ही नजर नहीं आती। कबीर जी ने राम राम करते हुये आँखें खोली ओर बड़ी नम्रता से कहा:
माता जी ! यह रोना-धोना छोड़ो और खाना खाओ, आपको भूख लगी होगी। माता जी ने और गुस्से
से कहा: वही तो रोना है कि घर में एक मुट्ठी भर आटा भी नहीं है। आटा, घी, दाल, चावल
कुछ भी नहीं बचा है। कबीर जी हँस कर बोले: उठ भोली माता ! अन्दर जाकर तो देख। परन्तु
माता जी अपनी जगह से हिली नहीं। तो कबीर जी ने उनकी बाँह पकड़कर उन्हें उठाया और अपने
साथ अन्दर ले गए। अन्दर जाकर जब माता ने देखा तो आटे की केनी भरी हुई थी। घी की पाटी
भी भरपूर थी। दालों का घड़ा भी भरा हुआ था और चुल्हे के पास बालन का ढेर लगा हुआ था।
यह देखकर माता बहुत ही हैरान हुई। माता बोली: कबीर ! सचमुच तेरा राम तो बड़ा अच्छा
भण्डारी है। फिर तूने मूझे पहले ही क्यों नहीं बता दिया कि सब कुछ आ चुका है। कबीर
जी ने कहा: माता जी ! आपको राम पर भरोसा नहीं था। बस अब मेरे राम पर भरोसा रखकर उसके
रँगों को देखती रहो। अब माता जी भी राम राम करती हुई खाना बनाने में लग गई। यह सच
है कि भक्त दिल से अपने भगवान का हो जाए तो उसे किसी भी वस्तु या चीज का घाटा नहीं
रहता। उसकी सभी जरूरतें परमात्मा आप ही पूरी करता है।