21. काजी को उपदेश
कबीरा जहा गिआनु तह धरमु है जहा झूठु तह पाप ।।
जहा लोभु तह कालु है जहा खिमा तह आपि ।। अंग 1372
शाही काजी में बहुत ही अहँकार था, वो शराह का पाबँद भी था। पाँच
बार दिन में निवाज गुजारता था और रोजे भी बाकायदा रखा करता था। हर साल शाही खर्च पर
वह हज भी कर आया करता था। इस कारण वो और मुस्लमानों को अपने से नीचा समझता था। जब
उसने कबीर जी के बारे में बातें सुनी तो वह अपनी शाही बग्गी में बैठकर उनके पास आया।
कबीर जी ने उनका स्वागत किया और कहा: आओ मेरे राम के बन्दे ! मेरा राम तुम्हें किस
प्रकार खिँचकर के ले आया है। राम का नाम सुनकर काजी गुस्से में कहने लगा: कबीर !
तेरी बातें सुनकर मुझे यकीन हो गया है कि तूँ मुस्लमान नहीं है। तूँ काफिर हैं और
काफिरों की बोली बोलता है। ना तूँ रोजे रखता है और नाही नमाज पढ़ता है और नाही हज को
जाता है, बता तुझे मूस्लमान किस प्रकार से कहा जाये ? तूँ काफिर हैं, काफिर। कबीर,
काजी का क्रोध देखकर हँस पड़े और कहा: काजी साहिब तुम भूल जाते हो, धर्म वहाँ है, जहाँ
पर ज्ञान होता है, जहाँ ज्ञान नहीं वहाँ पर पाप होता है। जहाँ पर लोभ अथवा गुस्सा आ
जाए, वहाँ पर तो तबाही के बिना कुछ भी पले नहीं पड़ता। नम्रता और क्षमा ही इन्सान का
बेड़ा पार करती है। काजी कहने लगा: कबीर ! बातें तो तेरी ज्ञान वाली हैं। परन्तु जब
तूँ मुस्लमान होकर नमाज नहीं पढ़ता, रोजे नहीं रखता तो मैं तुझे काफिर ही समझूँगा।
तूँ काफिरपन छोड़कर मेरे साथ चल मैं तुझे निमाज सिखाऊँगा, रोजे रखवाऊँगा और हज करने
के लिए साथ लेकर जाया करूँगा। फिर तूँ बहिशत (स्वर्ग) में जाएगा वहाँ रूहें तेरा
स्वागत करेंगी। शाही काजी की बातें सुनकर कबीर जी खिलखिला कर हँस पड़े और काजी उनका
मुँह देखने लग गया। इस बार कबीर जी के चेहरे के नूर का प्रभाव काजी पर इस प्रकार
हुआ कि उसकी जुबान से कोई गुस्ताखी भरा शब्द निकल ही नहीं सकता था। उसने नम्र भाव
से कबीर जी से पूछा: कबीर जी ! आप कभी हज पर क्यों नहीं गए ? कबीर जी: काजी जी ! गया
तो था पर खुदा नाराज हो गया था और उसने मुझे वापिस भेज दिया था। अब काजी हैरान होकर
कबीर जी की तरफ देखने लग गया। कबीर जी ने बाणी गायन की:
कबीर जर काबे हउ जाइ था आगै मिलिआ खुदाइ ।।
सांई मुझ सिउ लरि परिआ तुझै किनि फुरमाई गाइ ।। अंग 1375
काबे में कबीर जी के साथ खुदा के लड़ने की बात सुनकर काजी गुस्से
से लाल हो गया। कबीर जी ने उपदेश किया: काजी महाराज ! जब खुदा हर जगह मौजूद है तो
फिर उसे किसी विशेष स्थान पर जाने की क्या आवश्यकता है। काजी साहिब लगता है आप
मुहम्मद साहिब जी की सेवा भावना छोड़ चुके हो और उसकी जगह ले ली है अहँकार ने। यहाँ
पर भी इस्लाम का नाम बेचकर ऐश कर रहे हो और आगे के लिए भी रूहों की आस लिए बैठे हो।
यही तुम्हारे और मेरे में फर्क है। मैं राम नाम उपासक हूँ और मुक्ति माँगता हूँ और
आप काम, क्रोध, लोभ, मोह और अँहकार में फँसे हुए हो और मरकर भी इस चक्कर से निकलने
का आपका कोई इरादा नहीं है। काजी बोला: कबीर जी ! अल्लाह ताला ने कुछ हमारे लिए
हलाल करार दिया है, उसको मानना हमारा हक है। कबीर जी ने बाणी कही:
कबीर जोरी कीए जुलमु है कहता नाउ हलालु ॥
दफतरि लेखा मांगीऐ तब होइगो कउनु हवालु ॥१८७॥ अंग 1374
इस प्रकार बहुत सी बातें काजी और कबीर जी के बीच होती रही। कबीर
जी ने कुछ समय के लिए आँखें बन्द करके अर्न्तध्यान हो गये। फिर आँखें खोल कर कहने
लगे– काजी साहिब ! एक बात पुँछू ? काजी ने कहा: हाँ। कबीर जी: काजी जी ! यह बात ठीक
है ना कि जब तुम आज सुबह की नमाज पढ़ रहे थे, तब तुम्हारा ध्यान एक और विवाह करवाने
की तरफ था। काजी ने चौंककर कहा: हाँ। कबीर जी हँसकर बोले: काजी जी ! और आपकी नजर
में फिर रही थी वजीर साहिब जी की 16 साल की कुँवारी कन्या। जिसके साथ तुम 7 और औरतों
के होते हुए भी और तुम्हारे पैर कब्र में लटक रहे हैं फिर भी विवाह करना चाहते हो।
यह सुनकर काजी पानी-पानी हो गया। कबीर जी फिर बोले: काजी जी ! अब बताओ कि जब ध्यान
इस तरह की बातों में हो तो फिर नमाज पढ़ने का क्या लाभ ? काजी निरूत्तर होकर पूछने
लगा: कबीर जी ! तो क्या आप मुस्लमान धर्म को नहीं मानते ? कबीर जी बोले: काजी साहिब
! मैं तो राम का बँदा हूँ, जहाँ पर मैं हूँ मुझे वहीं पड़े रहने दो। अगर आप मुस्लमान
हो तो पहले अपने आपको सच्चा मुस्लमान बनाओ फिर किसी और को मुस्लमान बनाने की बात
करना। काजी साहिब निरूत्तर होकर चले गये। जब काजी और कबीर जी के बीच वार्तालाप चल
रहा था तो वहाँ पर आने वाले लोगों की भारी गिनती एकत्रित हो गई थी। काजी को इस तरह
झूठा और निरूत्तर होकर जाते देखकर संगते, श्रद्धालू बहुत ही खुश हुए। कबीर जी ने
संगतों को सम्बोधित करते हुये कहा: भक्तों ! और कुछ बनने से पहले एक इन्सान और राम
का भक्त जरूर बनना चाहिए। सच्चे दिल से उसकी भक्ति करनी चाहिए। काजी साहिब जी की
बातें तो आपने सुन ही ली होंगी कि वह नमाज पढ़ते समय ध्यान किसी और ही तरफ लगा देते
हैं और बाँगें लगाते हैं, क्या खुदा बहरा है या कम सुनता है कि आपकी धीरे से कही गई
बात नहीं सुन पाएगा। मनुष्य को अपने दिल में राम नाम बिठाना चाहिए।