9. परमात्मा द्वारा श्री कबीर साहिब
जी की परीक्षा
कबीर जी भक्त भी बन गये और गृहस्थी भी रहे। उनकी राम भक्ति की चर्चा पूरे शहर में
थी परन्तु उन्हें कोई भी मन्दिर में घुसने नहीं देता था। ब्राहम्ण विरोधता करते थे।
मौलवी और काजी भी नाराज थे। लेकिन जैसे-जैसे विरोधता बढ़ती गई, कबीर जी की लग्न पक्की
होती गई। जैसे-जैसे मन राम नाम से जुड़ता गया तो राम और कबीर में कोई फर्क न मालूम
हुआ। अपने भक्तों की परमात्मा आप ही रक्षा करता है और आप ही परीक्षा लेता है। एक
दिन कबीर जी को घर वालों ने कपड़े का थान लेकर बाजार में भेजा। कपड़ा बहुत ही सुन्दर,
साफ और बारीक था। कबीर जी कँधे पर कपड़ा उठाकर चले जा रहे थे कि एक साधू के भेष में
आप परमात्मा ही उन्हें मिल गए। यहाँ पर परमात्मा कबीर जी की परीक्षा लेने के लिए आये
थे। वह देखना चाहते थे कि जब घर में सब भूखे बैठे हैं। उस समय कबीर जी कपड़े की कीमत माँगते हैं या नहीं ? क्या दान कर देगें और घर वालों को भूल जाऐंगे ? साधू ने काँपते
हुए लहजे में कहा: हे भक्त ! राम के नाम पर कपड़ा दे दो, मेरे वस्त्र फट गए हैं। मेरे
पास धन नहीं है। तेरा पुण्य होगा। राम तेरी कमाई में बरकत डालेगा। राम के नाम से
भक्त कबीर जी जान वारते थे। वो भला कैसे मना करते। थान में से कपड़ा फाड़कर देने लगे,
पर साधू ने पूरे थान की ही माँग कर दी। कबीर जी ने सारा का सारा थान ही साधू के
हवाले कर दिया। जबकि घर से चलते समय कबीर जी की माता जी ने हुक्म दिया था कि घर में
राशन नहीं है, इस थान को बेचने से जो पैसे आऐं उसका आटा, दाल, चावल, मीठा, नमक और
तेल लेकर आना और जल्दी वापिस आना। पर राम जी ने उन्हें सब कुछ भूला दिया और वो राम
राम करते हुए गँगा जी की तरफ चल पड़े। गँगा के किनारे पर बैठकर राम नाम का सिमरन करने
लगे। उधर घर के लोग मुँह उठाकर देखते रहे कि कब कबीर जी आऐंगे और चुल्हा गर्म होगा। पर धरती, आकाश और पत्थरों में रहने वाले जीवों के आहार का
प्रबन्ध करने वाला परमात्मा भला एक भक्त के परिवार को भूखा कैसे देख सकता था।
परमात्मा ने झटपट ही एक सौदागर का रूप धारण करके कबीर जी द्वारा दिये गए थान के कई
थान बना दिए और बाजार में बेच दिए और घी आटा, दाल, चावल, तेल, नमक, मीठा आदि खरीदकर
बैलगाड़ी पर लदवा दिया। वह कबीर जी के घर पर जाकर पूछने लगे: यह घर कबीर जी का है ?
कबीर जी के पिता नीरो जी घर पर ही थे, वह बाहर निकले और सामने एक सौदागर को देखा,
जिसके चेहरे पर ऐसा जलाल था कि झेला नहीं जा रहा था। पिता हाथ जोड़कर बोले: जी !
कबीर का घर यही है और मैं उसका पिता हूँ। सौदागर ने कहा: ठीक है ! आप यह बैलगाड़ी
वाला सारा सामान उतारकर अपने घर पर रखो, मुझे कबीर जी ने भेजा है और वो किसी जरूरी
काम से गए हैं, जल्दी करो मुझे देर हो रही है। नीरो ने बैलगाड़ी में लदा हुआ काफी
मात्रा में सामान देखा तो उसे शक हुआ। वह सोचने लगा कि यह सौदागर जरूर किसी का नाम
और घर का पता भूल गया है, क्योंकि कबीर तो घर से कपड़े का केवल एक थान ही लेकर गया
था, फिर उसे इतने सारे पैसे कैसे मिल गए कि उसने बैलगाड़ी भरकर सामान खरीद लिया है।
इतने में माता नीमा और कबीर जी की पत्नी लोई जी भी आ गईं और सौदागर के बार-बार कहने
पर कि उन्हें कबीर जी ने ही भेजा है, वह सारी समाग्री लेनी पड़ी। सौदागर आप चीजें
उठाकर कबीर जी के घर गया। आज तो भगवान आप ही अपने भक्त के घर पर आए हुए थे। वह
सौदागर वापिस चला गया। घर पर सभी प्रसन्न थे, क्योंकि कई महीनों का राशन मिल गया
था। उन्होंने खुले दिल से खाना पकाया और कबीर जी का इन्तजार करने लगे। काफी रात हो
गई जब कबीर जी घर आए। तब घर में लोई जी ने उन्हें सौदागर वाली बात बताई तो यह सुनकर
कबीर जी मुस्करा दिए और राम राम करने लगे। वो समझ गए कि जिस साधू ने कपड़ा माँगा था,
वह परमात्मा थे। उस दिन से उनके घर वाले भी भक्ति-भाव से श्रद्धा रखने लगे।