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8. कबीर जी का विवाह

कबीर जी का उसकी जाति-बिरादरी में बहुत ही सम्मान हो गया था। जब कबीर जी जवान हुए तो बहुत ही सुन्दर निकले। उनके मोटे नैन भक्ति रस में डुबे बहुत ही मनमोहक थे। कद-काठी से ऊँचे लम्बे और गोरा रँग था। कबीर जी भगवे चोले में मनमोहक जोगी लगते थे। कई जुलाहों ने उनके पिता नीरो जी से कहा कि कबीर जी की विवाह कर दो, क्योंकि विवाह हो जाने पर वह गृहस्थ मार्ग पर चल पड़ेंगे और साधू बिरती भी कम हो जाएगी। लोगों की ऐसी बातें सुनकर पिता नीरो और माता नीमा जी कबीर जी का विवाह करने को तैयार हो गए। काशी में ही एक दूसरे मोहल्ले में एक जुलाहे की सुन्दर बेटी थी। इनका नाम लोई जी था, इनसे विवाह करना तय हुआ। कबीर जी और लोई जी का रूप रँग एक जैसा था। कबीर जी का लोई जी से विवाह हो गया और वह कबीर जी के घर पर आ गईं। कबीर जी के साथ रहने से उसे भी राम भजन की लग्न लग गई। वह भी कभी-कभार राम नाम का सिमरन करने लगी पर भरोसा मजबूत नहीं था, कभी-कभी डोल जाती थीं। कबीर जी के घर में दो बच्चों ने जन्म लिया। कमाल और कमाली। कमाल बड़ा था और कमाली छोटी। अब कबीर जी के पिता नीरो जी बुढ़े हो गए थे और घर का सारा खर्च कबीर जी की मेहनत पर निर्भर था। कबीर जी कपड़ा बुनते और साधु संतों की संगत भी कर लेते। कबीर जी कपड़ा बुनते समय भी राम सिमरन को ना भुलते, जिससे उनकी कमाई में बरकत होती।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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