17. कबीर जी को गँगा में डुबाना
कबीर जी को कोतवाल ने बन्दीखाने में बन्द कर दिया और बादशाह ने सारे शहर में ढिँढोरा
पिटवा दिया कि लोगों को अच्छी तरह से समझा दो कि सुबह बादशाह के हुक्म से कबीर भक्त
को गँगा में डुबाकर मार दिया जाएगा। सभी देखने के लिए आऐं, कोई घर पर न रहे। जो
देखने नहीं आएगा। उसको सजा दी जाएगी। लोगों ने हुक्म सुना। सारे शहर में हड़ताल हो
गई, क्योंकि कबीर जी सबके हरमन प्यारे थे। सभी तड़के ही गँगा के किनारे पर आकर खड़े
हो गए। सभी राम नाम का सिमरन करते हुए परमात्मा से अरदास करने लगे। माता लोई जी,
कमाल जी और कमाली जी भी गँगा किनारे पहुँचे। उनको भरोसा था कि राम भली करेगा। वह नहीं
डोले। वह घड़ी आ पहुँची, जब बादशाह ने गँगा के किनारे पर अपना आसन रखवाया और हुक्म
दिया कि कबीर जी के हाथ-पैर बाँधकर गँगा में फैंक दिया जाए। देखते हैं कैसे कबीर जी
का राम इसे डुबने से बचाता है। आज राम के भक्तों का सारा पाखण्ड प्रकट हो जाएगा।
बादशाह के हुक्म से कबीर जी को हाथ-पैर बाँधकर गँगा में फैंक दिया गया। जब कबीर जी
गँगा में डूबने लगे तो उन्होंने कहा– हे राम ! तभी उनके हाथ-पैरों की जँजीरें टूट
गईं। फिर कबीर जी पानी पर बैठ गए और वापिस आ गए। सभी ने हैरानी से देखा। कबीर जी
गँगा के जल के ऊपर चौकड़ी मारकर बैठे हुए नजर आने लगे, जैसे गुलाब का फुल पानी के
ऊपर तैरता है। वह बाणी गाने लगे:
गंग गुसाइनि गहिर ग्मभीर ॥ जंजीर बांधि करि खरे कबीर ॥१॥
मनु न डिगै तनु काहे कउ डराइ ॥ चरन कमल चितु रहिओ समाइ ॥ रहाउ ॥
गंगा की लहरि मेरी टुटी जंजीर ॥ म्रिगछाला पर बैठे कबीर ॥२॥
कहि कंबीर कोऊ संग न साथ ॥ जल थल राखन है रघुनाथ ॥३॥१०॥१८॥ अंग 1162
अर्थ: जब मुझे गँगा में फैंका गया तो गँगा बड़े गुस्से से बह रही
थी। जँजीर बाँधकर गँगा में कबीर जी को फैंका गया। उस समय लोगों ने देखा कि मृगशाला
(हिरन की खाल) पर कबीर जी बैठे हुए थे। जिसका मन नहीं डरता, उसके तन को भला कौन डरा
सकता है ? कबीर जी फरमाते हैं कि मन तो हरि के चरणों में जुड़ा हुआ था। मृगशाला पर
सवार होकर कबीर जी बच गए। यह मृगशाला नहीं थी, बल्कि परमात्मा की शक्ति थी। परमात्मा
आप प्रकट हुए और अपने कबीर जी की आप ही रक्षा की। वहाँ पर कोई सँगी साथी नहीं था,
फिर भी कबीर जी बच गए, क्योंकि परमात्मा ने उन्हें बचाया था और वो किसी को भी बचाने
में समर्थ है। कबीर जी गँगा के किनारे आ गए तो मृगशाला अपने आप आलोप हो गई। यह
देखकर सभी लोग बहुत ही हैरान हुए। कबीर जी भजन करते हुए शहर की तरफ चल पड़े। पुरे
काशी नगर में यह बात जँगल की आग की तरह फैल गई कि कबीर जी बच गए हैं। बादशाह को यह
मालूम हुआ तो उसने दुबारा हुक्म दिया कि कबीर को फिर से पकड़कर हमारे सामने लेकर आओ।