16. कबीर जी बादशाह के दरबार में
कबीर जी बादशाह के दरबार में पहुँच गए उनके चेहरे पर अलाही नूर था। बादशाह, कबीर जी
के चेहरे का जलाल देखकर दँग रह गया। उसके मन में जो गुस्सा और शक था वह एक पल के
लिए दूर हो गया। वह कितनी ही देर तक कबीर जी के चेहरे की तरफ देखता रहा। कबीर जी ने
बादशाह का सत्कार किया और राम नाम का सिमरन करते रहे। सारे दरबारी हैरान थे।
श्रद्धालू बाहर खड़े उतावले थे कि कबीर जी के साथ पता नहीं क्या बितेगी। आखिरकार
बादशाह ने पूछा: कबीर तेरा नाम है ? कबीर जी: हाँ बादशाह: तेरा बाप नीरो जुलाहा है
? कबीर जी: जी ! होगा, पर मेरा असल बाप तो राम है। यह सुनकर, जो कबीर जी के दुश्मन
थे, एक साथ बोले: देखा जहाँपनाह ! हम ठीक बोल रहे थे कि यह काफिर है या नहीं। यह
बागी आपसे भी सीधी तरह से बात नहीं करता। बादशाह बोल: कबीर ! क्या यह ठीक है कि तूँ
हिन्दू धर्म शास्त्रों और इस्लाम की शरहा की विरोधता करता है ? लोगों में बदअमनी का
प्रचार करता है। जो बड़े-बूजुर्ग की रस्में हैं उनकी विरोधता कर रहा है। कबीर जी:
जहाँपनाह ! मैं किसी के हक में हूँ या विरूद्ध मुझे पता नहीं। मैं तो राम नाम का
सिमरन करता हूँ, जो जड़ और चेतन का मालिक है। पशू, पक्षी, कीड़े-मकौड़े, हवा-पानी, धरती
और आकाश जिसने बनाए हैं। मैं कैसे कहुँ कि राम हर तरफ व्याप्त है। मेरा राम मेरे
साथ, आपके साथ और सबके साथ है– राम ! राम ! राम ! बादशाह बोला: कबीर ! ज्यादा बक-बक
ना कर ! मुस्लमानों के घर पर जन्म लेकर राम का नाम लेता है। या तो कलामा पढ़ और सच्चा
मुस्लमान बन जा, नहीं तो पानी में डुबोकर मार दिया जाएगा। मैं ओर काई बात नहीं सुनना
चाहता। उस समय कोई लिखती कानून नहीं होता था और नाही कोई वकील या अदालत। बस बादशाह
की जुबान ही सब कुछ होती थी। वह जो हुक्म दे, वह ठीक समझा जाता था। बादशाह की जुबान
से मौत का हुक्म सुनकर सब हक्के-बक्के रह गए। कबीर जी का परिवार भी घबरा गया पर
कबीर जी ने निरभयता के साथ बाणी कही:
गउड़ी कबीर जी ॥
आपे पावकु आपे पवना ॥ जारै खसमु त राखै कवना ॥१॥
राम जपत तनु जरि की न जाइ ॥
राम नाम चितु रहिआ समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
का को जरै काहि होइ हानि ॥ नट वट खेलै सारिगपानि ॥२॥
कहु कबीर अखर दुइ भाखि ॥
होइगा खसमु त लेइगा राखि ॥३॥३३॥ अंग 329
अर्थ: आप ही परमात्मा आग है और आप ही हवा है। कोई किसी को ना
कोई जला सकता है और नाही डुबा सकता है। वह मालिक अगर किसी को मारे तो कोई रख नहीं
सकता। जिसको उसने बचाना है, उसे कोई मार नहीं सकता। राम नाम का सिमरन करने वाले का
कभी तन नहीं जलता। वह अमर है, क्योंकि दिल में राम नाम है, जो अमर है। जिसको हवा,
पानी और आग असर नहीं कर सकती। यह तो मेरा राम खेल देखता है। उसके खेल न्यारे हैं।
वह रात-दिन खेल करके देखता है और प्रसन्न होता है। यह शबद सुनकर कबीर जी को पकड़ लिया
गया और बन्दीखाने की तरफ भेज दिया गया। पीछे-पीछे संगत थी। कबीर जी का दोष केवल इतना
था कि वह राम की भक्ति करते थे, खुदा की इबादत करते थे। उनके वैरी बने काजी और
पण्डित दोनों ही खुदा और राम के राखे। उनका नाम जपने वाले।