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11. कबीर जी का भरोसा

कबीर जी के समय जातपात और छूआछूत का बहुत ही ज्यादा जोर था। कबीर जी ने जातपात और ऊँच-नीच का बहुत खण्डन किया। वह अपने काम-धँधे से जब भी अवकाश पाते तो ज्ञान चर्चा में जुड़ जाते और लोगों को उपदेश देकर यात्रियों और भूले-भटकों को भक्ति मार्ग से जोड़ते। आप जी के पास सदैव साधू संत बैठे रहते थे। आप जो भी उपदेश करते, वो बाणी द्वारा ही करते। इसी कारण कबीर जी की बाणी बहुत है। आप जगत की अस्थिरता (नाश होने) बारे में फरमाते हैं:

ऐसो इहु संसारु पेखना रहनु न कोऊ पईहै रे ॥
सूधे सूधे रेगि चलहु तुम नतर कुधका दिवईहै रे ॥१॥ रहाउ ॥
बारे बूढे तरुने भईआ सभहू जमु लै जईहै रे ॥
मानसु बपुरा मूसा कीनो मीचु बिलईआ खईहै रे ॥१॥
धनवंता अरु निर्धन मनई ता की कछू न कानी रे ॥
राजा परजा सम करि मारै ऐसो कालु बडानी रे ॥२॥
हरि के सेवक जो हरि भाए तिन्ह की कथा निरारी रे ॥
आवहि न जाहि न कबहू मरते पारब्रह्म संगारी रे ॥३॥
पुत्र कलत्र लछिमी माइआ इहै तजहु जीअ जानी रे॥
कहत कबीरु सुनहु रे संतहु मिलिहै सारिगपानी रे ॥४॥  अंग 855

अर्थ: हे जिज्ञासूओं सुनो ! इस जगत को सराय की तरह समझो और यह भरोसा करो यहाँ पर किसी ने नहीं रहना। इसलिए हर जीव को नेकी, भगती और सच्चाई के रास्ते पर सीधे चलना चाहिए, क्योंकि नेकी, धर्म और सच्चाई ही साथ में जाती है। जीव तो आता और जाता रहता है। कोई चीज स्थिर नहीं। मौत ने बूढ़ों, जवानों और छोटे सभी को ले जाना है। मनुष्य तो चूहा है और मौत की बिल्ली इसको खा जाती है, चाहे कोई गरीब हो या अमीर, राजा हो या प्रजा उसे किसी की भी परवाह नहीं। मौत पूरा न्याय करती है। हे राम के भक्त जनों ! बस हरि की कथा निराली है। उसको अपने भक्त अच्छे लगते हैं। वो कभी मरते नहीं। परमात्मा उनकी इज्जत करता है। साँस-साँस के साथ हरि का नाम जपो। पुत्र, पुत्री, पत्नी और दौलत यह, यहीं पर रह जायेगी। प्रभु की भक्ति करने से उसके साथ हिल-मिल जाओगे और किसी भी प्रकार की चिन्ता नहीं रहेगी। सदीवी आनँद प्राप्त हो जाएगा।

कबीर जिसु मरने ते जगु डरै मेरे मनि आनंदु ॥
मरने ही ते पाईऐ पूरनु परमानंदु ॥२२॥  अंग 1365

सारी दुनियाँ शरीरक मौत से डरती है। मौत का नाम सुनकर घबराती है, पर मरने से ही तो परमात्मा को प्राप्त करते हैं। भाव यह कि शरीर से मोह नही करना चाहिए। आत्मा और शरीर प्रतीत तो एक ही होते है, परन्तु इनका संबंध अलग-अलग होता है। पाँच भूतक शरीर जीव यहीं से लेता है और यहीं पर छोड़ देता है। आगे नहीं जाता। मुस्लमान गाढ़ देते हैं और हिन्दू जला देते हैं। पर जीव आत्मा तो मरन से परे अमर है। उसको न तो कोई आते हुए देखता है और नाही जाते हुए। वो तो परमात्मा के पास हिसाब देने जाती है। अगर अच्छे कर्म और नेक कर्म किए हैं और भक्ति की है तो परमानँद के स्वरूप में मिल जाती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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