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1. जन्म
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जन्म: 1398 ईस्वी
जन्म स्थानः काशी (बनारस) लहर तलाउ
माता का नामः नीमा
पिता का नामः नीरू
पत्नि का नामः लोई जी
कितनी सन्तान थीः 2
सन्तानों के नामः पुत्र कमाला जी, पुत्री कमाली जी
बाणी में योगदानः बाणी कुल जोड़ः 532, 16 रागों में
प्रमुख बाणियाँ: बावन अखरी, सत वार, थिती
कबीर शब्द का अर्थः कबीर का अरेबिक अर्थ है, बड़ा या महान
जातिः मुस्लमान जुलाहा
पैतृक व्यवसायः कपड़ा बुनकर
गुरू का नामः स्वामी रामानन्द जी
दो प्रमुख रचनाऐं: 1. कबीर ग्रन्थावली, 2. बीजक
कब तक रहेः 1448 ए.डी. (लेकिन कबीर पँथियों के अनुसार वो 120 साल तक रहे, 1398
से 1518)।
समकालीन बादशाहः सिकन्दर लोधी
किस स्थान पर जोती जोत समायेः हरम्बा (मगहर) उत्तरप्रदेश
कबीरदास जी ने मुस्लमान होते हुए भी सुन्नत नहीं करवाई थी। इसका लेखा बाणी में
भी मिलता है।
बादशाह द्वारा पहली बार इन्हें गँगा में डुबाने की कोशिश की गई, किन्तु इनके
नीचे मृगशाला बन गई थी।
बादशाह द्वारा इन्हें दूसरी बार आग में जलाने की कोशिश की गई, किन्तु यह
प्रहलाद की तरह बच गए।
बादशाह द्वारा इन्हें तीसरी बार हाथी द्वारा कुचलवाने का यत्न किया गया किन्तु
हाथी इन्हें नमस्कार करके पीछे हट गया था।
कबीर पँथ की स्थापना इनके एक मुखी शिष्य धर्मदास धनी ने की थी।
कबीरदास जी अपने गुरू रामानंद को भी शिक्षा देने से हिचकते नहीं थे।
कबीरदास जी की बाणी सारे भक्तों में से सबसे अधिक है।
इन्हें शिरोमणी भक्त भी कहा जाता है।
नवाब बिजली खान पठान इनका भक्त बन गया था।
राजा बरदेव भी इनका परम भक्त था।
भक्त कबीर जी का जन्म सन 1398 में जेठ की पूरनमासी को अमृत समय
(ब्रहम समय) में माता नीमा की कोख से जन्म लिया। बालक के दर्शन करके दाई हैरान रह
गयी। उसकी आँखें खुली रह गई। वो यह भी नहीं बोल पाई कि लड़का हुआ है बधाई हो। उसकी
आश्चर्यता का कारण बालक के चेहरे पर निराला ही नूर था। मुख पर सुरज जैसा रोशनी का
चक्र था और कमरे में मधुर सी राम नाम की धुनी सुनाई दी और बच्चा हुआ। जैसे बच्चा
होने पर आम बालक रोते हैं पर इनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। इसी
मुस्कुराहट ने दाई को तँग किया था। मुस्लमान दाई ने केवल यही कहा: हे अल्लाह ! इसके
बाद उसको होश आया तो वह बाहर आकर सबसे बोली कि बधाई हो लड़का हुआ है, बहुत ही सुन्दर
लड़का। पिता नीरो ने जब यह सुना तो वह खुशी से दिवाना हो गया और उसने ढोल बाजे वालों
को बुला लिया। नीरो के यहाँ लड़का पैदा हुआ है यह बात जुलाहों के मुहल्ले में जँगल
की आग की तरह फैल गई। सभी नीरो का बहुत आदर करते थे, वह चौधरी था पर औलाद न होने का
दुख सारे अनुभव करते थे। नीरो ने गुड़ बाँटा और मस्जिद पर भी गुड़ भेजा। खुशी के
दिन बहुत ही जल्दी बीत जाते हैं। अब सवा महीना होते देर न लगी। सभी रस्में पुरी हो
गई थीं। नीमा बालक को खिलाते हुए खुशियाँ ले रही थी। मुस्लमानी मत के अनुसार मौलवी
ने घर पर आकर नाम रखने की रस्म पूरी की। नाम कबीर रखा गया। कबीर का अर्थ है– बड़ा या
महान। कबीर बचपन में ही बड़ों की तरह मस्त रहने लगे। इनके जो भी दर्शन करता वो निहाल
हो जाता, जो भी महिला उसे गोदी में खिलाती उसकी मन की मुराद पूरी हो जाती और उसके
घर से दरिद्रता, रोग और लड़ाई दूर हो जाती। इस प्रकार एक साल बीत गया।
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