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4. घर

घर का सम्बन्ध भी कीर्तन से है। गुरमति सँगीत में इसे दो अर्थों में देखा गया है– ताल व स्वर। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में 1 से 17 तक घर लिखे मिलते हैं। इससे गायन करने वाले को सूचना मिलती है कि इस शब्द को इस राग के अमुक नम्बर के स्वर-प्रसार अनुसार गायन करना है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में शब्दों के शीर्षक पर आए ‘घरु’ से भाव है इस शब्द का गायन किस घर में होना है। उदाहरण के लिएः

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
आसा घरु १० महला ५ ॥
जिस नो तूं असथिरु करि मानहि ते पाहुन दो दाहा ॥
पुत्र कलत्र ग्रिह सगल समग्री सभ मिथिआ असनाहा ॥१॥
रे मन किआ करहि है हा हा ॥
द्रिसटि देखु जैसे हरिचंदउरी इकु राम भजनु लै लाहा ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे बसतर देह ओढाने दिन दोइ चारि भोराहा ॥
भीति ऊपरे केतकु धाईऐ अंति ओरको आहा ॥२॥
जैसे अम्मभ कुंड करि राखिओ परत सिंधु गलि जाहा ॥
आवगि आगिआ पारब्रह्म की उठि जासी मुहत चसाहा ॥३॥
रे मन लेखै चालहि लेखै बैसहि लेखै लैदा साहा ॥
सदा कीरति करि नानक हरि की उबरे सतिगुर चरण ओटाहा ॥४॥१॥१२३॥

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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