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2. पउड़ी

श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में दर्ज वारों के कई छँत ‘पउड़ी’ शीर्षक के नीचे भी दर्ज देखे जा सकते हैं। पउड़ी एक प्रकार का छँत प्रबन्ध है। इसमें विशेष करके युद्ध की वारें रची जाती हैं। भाई गुरदास जी की वारों के छँत भी ‘पउड़ी’ के नाम से ही प्रसिद्ध हैं।

उदाहरण के लिएः
सलोक मः ४ ॥
मनमुख मूलहु भुलिआ विचि लबु लोभु अहंकारु ॥
झगड़ा करदिआ अनदिनु गुदरै सबदि न करहि वीचारु ॥
सुधि मति करतै सभ हिरि लई बोलनि सभु विकारु ॥
दितै कितै न संतोखीअहि अंतरि तिसना बहु अगिआनु अंध्यारु ॥
नानक मनमुखा नालो तुटी भली जिन माइआ मोह पिआरु ॥१॥
मः ४ ॥ जिना अंदरि दूजा भाउ है तिन्हा गुरमुखि प्रीति न होइ ॥
ओहु आवै जाइ भवाईऐ सुपनै सुखु न कोइ ॥
कूड़ु कमावै कूड़ु उचरै कूड़ि लगिआ कूड़ु होइ ॥
माइआ मोहु सभु दुखु है दुखि बिनसै दुखु रोइ ॥
नानक धातु लिवै जोड़ु न आवई जे लोचै सभु कोइ ॥
जिन कउ पोतै पुंनु पइआ तिना गुर सबदी सुखु होइ ॥२॥
पउड़ी मः ५ ॥
नानक वीचारहि संत मुनि जनां चारि वेद कहंदे ॥
भगत मुखै ते बोलदे से वचन होवंदे ॥
परगट पाहारै जापदे सभि लोक सुणंदे ॥
सुखु न पाइनि मुगध नर संत नालि खहंदे ॥
ओइ लोचनि ओना गुणा नो ओइ अहंकारि सड़ंदे ॥
ओइ वेचारे किआ करहि जां भाग धुरि मंदे ॥
जो मारे तिनि पारब्रहमि से किसै न संदे ॥
वैरु करनि निरवैर नालि धरमि निआइ पचंदे ॥
जो जो संति सरापिआ से फिरहि भवंदे ॥
पेडु मुंढाहू कटिआ तिसु डाल सुकंदे ॥३१॥

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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