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8. बिरहड़े

श्री गुरू अरजन देव साहिब जी द्वारा रचित यह बाणी आसा राग में श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी के अंग 431 पर सुशोभित है जैसे इसके शीर्षक से ही स्पष्ट है कि वियोग या विरह में तड़पती रूह के वलवलों का प्रसँग रूपमान होता है। बिछुड़ना मौत है, मिलाप जीवन है और मिलाप के लिए अच्छे गुण वाहन बन जाते हैं।

उदाहरण के लिएः
आसा महला ५ बिरहड़े घरु ४ छंता की जति
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
पारब्रह्मु प्रभु सिमरीऐ पिआरे दरसन कउ बलि जाउ ॥१॥
जिसु सिमरत दुख बीसरहि पिआरे सो किउ तजणा जाइ ॥२॥
इहु तनु वेची संत पहि पिआरे प्रीतमु देइ मिलाइ ॥३॥
सुख सीगार बिखिआ के फीके तजि छोडे मेरी माइ ॥४॥
कामु क्रोधु लोभु तजि गए पिआरे सतिगुर चरनी पाइ ॥५॥
जो जन राते राम सिउ पिआरे अनत न काहू जाइ ॥६॥
हरि रसु जिन्ही चाखिआ पिआरे त्रिपति रहे आघाइ ॥७॥
अंचलु गहिआ साध का नानक भै सागरु पारि पराइ ॥८॥१॥३॥
जनम मरण दुखु कटीऐ पिआरे जब भेटै हरि राइ ॥१॥
सुंदरु सुघरु सुजाणु प्रभु मेरा जीवनु दरसु दिखाइ ॥२॥
जो जीअ तुझ ते बीछुरे पिआरे जनमि मरहि बिखु खाइ ॥३॥
जिसु तूं मेलहि सो मिलै पिआरे तिस कै लागउ पाइ ॥४॥
जो सुखु दरसनु पेखते पिआरे मुख ते कहणु न जाइ ॥५॥
साची प्रीति न तुटई पिआरे जुगु जुगु रही समाइ ॥६॥
जो तुधु भावै सो भला पिआरे तेरी अमरु रजाइ ॥७॥
नानक रंगि रते नाराइणै पिआरे माते सहजि सुभाइ ॥८॥२॥४॥
सभ बिधि तुम ही जानते पिआरे किसु पहि कहउ सुनाइ ॥१॥
तूं दाता जीआ सभना का तेरा दिता पहिरहि खाइ ॥२॥
सुखु दुखु तेरी आगिआ पिआरे दूजी नाही जाइ ॥३॥
जो तूं करावहि सो करी पिआरे अवरु किछु करणु न जाइ ॥४॥
दिनु रैणि सभ सुहावणे पिआरे जितु जपीऐ हरि नाउ ॥५॥
साई कार कमावणी पिआरे धुरि मसतकि लेखु लिखाइ ॥६॥
एको आपि वरतदा पिआरे घटि घटि रहिआ समाइ ॥७॥
संसार कूप ते उधरि लै पिआरे नानक हरि सरणाइ ॥८॥३॥२२॥१५॥२॥४२॥
अंग 431

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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