4. सोहिला
‘सोहिला’ का शाब्दिक अर्थ आनन्द, खुशी या प्रशँसा है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में
यह बाणी अंग 12 पर अंकित है तथा यह सिक्ख के नितनेम की बाणी है। इस बाणी में महला
1, महला 4 व महला 5 की बाणी दर्ज है। इस बाणी का भाव अर्थ परमात्मा से बिछुड़ी जीव
स्त्री व उससे मिलाप तथा मिलाप के बाद की खुशियों का प्रकटाव है। इस बाणी में
परमात्मा से मिलाप का मार्ग बताया गया है।
उदाहरण के लिएः
सोहिला रागु गउड़ी दीपकी महला १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
जै घरि कीरति आखीऐ करते का होइ बीचारो ॥
तितु घरि गावहु सोहिला सिवरिहु सिरजणहारो ॥१॥
तुम गावहु मेरे निरभउ का सोहिला ॥
हउ वारी जितु सोहिलै सदा सुखु होइ ॥१॥ रहाउ ॥
नित नित जीअड़े समालीअनि देखैगा देवणहारु ॥
तेरे दानै कीमति ना पवै तिसु दाते कवणु सुमारु ॥२॥
स्मबति साहा लिखिआ मिलि करि पावहु तेलु ॥
देहु सजण असीसड़ीआ जिउ होवै साहिब सिउ मेलु ॥३॥
घरि घरि एहो पाहुचा सदड़े नित पवंनि ॥
सदणहारा सिमरीऐ नानक से दिह आवंनि ॥४॥१॥ अंग 12