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17. ओअंकार

यह श्री गुरू नानक पातशाह की बाणी राम रामकली में श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी के "अंग 929" पर सुशोभित है। ओअंकार परमात्मा नाम है। सैद्धान्तिक पक्ष से हम बाणी में परमात्मा को वाहिद मालिक दर्शाया है तथा उसके विशाल गुणों का प्रकटाव भी किया है।

उदाहरण के लिएः (5 पद दिए जा रहे हैं)
रामकली महला १ दखणी ओअंकारु ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ओअंकारि ब्रह्मा उतपति ॥
ओअंकारु कीआ जिनि चिति ॥
ओअंकारि सैल जुग भए ॥
ओअंकारि बेद निरमए ॥
ओअंकारि सबदि उधरे ॥
ओअंकारि गुरमुखि तरे ॥
ओनम अखर सुणहु बीचारु ॥
ओनम अखरु त्रिभवण सारु ॥१॥
सुणि पाडे किआ लिखहु जंजाला ॥
लिखु राम नाम गुरमुखि गोपाला ॥१॥ रहाउ ॥
ससै सभु जगु सहजि उपाइआ तीनि भवन इक जोती ॥
गुरमुखि वसतु परापति होवै चुणि लै माणक मोती ॥
समझै सूझै पड़ि पड़ि बूझै अंति निरंतरि साचा ॥
गुरमुखि देखै साचु समाले बिनु साचे जगु काचा ॥२॥
धधै धरमु धरे धरमा पुरि गुणकारी मनु धीरा ॥
धधै धूलि पड़ै मुखि मसतकि कंचन भए मनूरा ॥
धनु धरणीधरु आपि अजोनी तोलि बोलि सचु पूरा ॥
करते की मिति करता जाणै कै जाणै गुरु सूरा ॥३॥
ङिआनु गवाइआ दूजा भाइआ गरबि गले बिखु खाइआ ॥
गुर रसु गीत बाद नही भावै सुणीऐ गहिर ग्मभीरु गवाइआ ॥
गुरि सचु कहिआ अमृतु लहिआ मनि तनि साचु सुखाइआ ॥
आपे गुरमुखि आपे देवै आपे अमृतु पीआइआ ॥४॥
एको एकु कहै सभु कोई हउमै गरबु विआपै ॥
अंतरि बाहरि एकु पछाणै इउ घरु महलु सिञापै ॥
प्रभु नेड़ै हरि दूरि न जाणहु एको स्रिसटि सबाई ॥
एकंकारु अवरु नही दूजा नानक एकु समाई ॥५॥ अंग 929

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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