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16. अनंदु

‘अनंदु’ गुरू अमरदास जी की प्रमुख बाणी है जो ‘रामकली महला 3 अनुदं’ शीर्षक से श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी के अंग 917 पर दर्ज है। अनंद का शाब्दिक अर्थ खुशी या प्रसन्नता किया गया है। इस सारी रचना का भाव आनन्द पर केन्द्रित है तथा इस बाणी की 40 पउड़ियाँ हैं। इस बाणी में यह रूपमान किया गया है कि साँसारिक सुखों का आनन्द क्षण-भँगुर है पर असल आनन्द प्रभु से एकसुरता है। प्रभु से एकसुरता के बाद स्थायी आनन्द की प्राप्ति हो जाती है। सिक्ख धर्म परम्परा में इस बाणी की 6 पउड़ियाँ: पहली पाँच व अन्तिम का गायन नियम से प्रत्येक कार्य में किया जाता है।

उदाहरण के लिएः (पहली 5 पउड़ियाँ)
रामकली महला ३ अनंदु ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥
सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥
राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥
सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥
कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥
ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥
हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥
अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥
सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥
कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥
साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥
घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥
सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥
नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥
कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥
साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥
करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥
सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥
कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥
वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥
घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥
पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥
धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥ अंग 917
(अन्तिम पउड़ी)
अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥
पारब्रह्मु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥
दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥ अंग 922

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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