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13. गुणवँती

श्री गुरू अरजन साहिब जी द्वारा रचित श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी के सूही राग में दर्ज इस बाणी का मूल भाव सँयमी वृतियों के द्वारा परमात्मा का गुण गायन करना और उन गुणों को अंगीकार करने के लिए आत्मसमर्पण एवँ नम्रता जैसे गुणों को अपनी जिन्दगी का अंग बना लेना है। ऐसी अवस्था ही प्रभु से मिलाप का रास्ता खोजती है।

उदाहरण के लिएः
सूही महला ५ गुणवंती ॥
जो दीसै गुरसिखड़ा तिसु निवि निवि लागउ पाइ जीउ ॥
आखा बिरथा जीअ की गुरु सजणु देहि मिलाइ जीउ ॥
सोई दसि उपदेसड़ा मेरा मनु अनत न काहू जाइ जीउ ॥
इहु मनु तै कूं डेवसा मै मारगु देहु बताइ जीउ ॥
हउ आइआ दूरहु चलि कै मै तकी तउ सरणाइ जीउ ॥
मै आसा रखी चिति महि मेरा सभो दुखु गवाइ जीउ ॥
इतु मारगि चले भाईअड़े गुरु कहै सु कार कमाइ जीउ ॥
तिआगें मन की मतड़ी विसारें दूजा भाउ जीउ ॥
इउ पावहि हरि दरसावड़ा नह लगै तती वाउ जीउ ॥
हउ आपहु बोलि न जाणदा मै कहिआ सभु हुकमाउ जीउ ॥
हरि भगति खजाना बखसिआ गुरि नानकि कीआ पसाउ जीउ ॥
मै बहुड़ि न त्रिसना भुखड़ी हउ रजा त्रिपति अघाइ जीउ ॥
जो गुर दीसै सिखड़ा तिसु निवि निवि लागउ पाइ जीउ ॥३॥ अंग 763

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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