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1. जपु

श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी का आरम्भ "जपु" बाणी से होता है जिसका सिक्ख धर्म में बेहद महत्व है तथा यह नितनेम की बाणी है। यह बाणी गुरू नानक पातशाह द्वारा रचित है और यह श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी का बीज रूप है। इस बाणी की "38 पउड़ियाँ" व "2 सलोक" हैं। एक सलोक बाणी के आरम्भ में तथा दूसरा बाणी के अन्त में है। आरम्भ में परमात्मा के स्वरूप की व्याख्या है जिसे मूलमँत्र कहा जाता है। मूलमँत्र के पश्चात् बाणी का शीर्षक "जपु" अंकित किया गया है। यह बाणी राग युक्त नहीं है। इस बाणी का केन्द्रीय भाव अकालपुरख, मनुष्य एवँ समाज है। मनुष्य को प्रभु के घर का वासी बनाने हित भाव "सचिआर" पद की प्राप्ति के लिए उसका मार्ग निर्देशन किया गया है। इस अवस्था की प्राप्ति के लिए जहाँ सुनने, मानने व पँच का राह दर्शाया है, वहाँ साथ ही पाँच खण्डों द्वारा अध्यात्मिक प्राप्ति के शिखर को रूपमान किया गया है।

उदाहरण के लिएः
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर
प्रसादि ॥ ॥ जपु ॥
आदि सचु जुगादि सचु ॥
है भी सचु नानक होसी भी सचु ॥१॥
सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार ॥
भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥
सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ॥
किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि ॥
हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ॥१॥
हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥
हुकमी होवनि जीअ हुकमि मिलै वडिआई ॥
हुकमी उतमु नीचु हुकमि लिखि दुख सुख पाईअहि ॥
इकना हुकमी बखसीस इकि हुकमी सदा भवाईअहि ॥
हुकमै अंदरि सभु को बाहरि हुकम न कोइ ॥
नानक हुकमै जे बुझै त हउमै कहै न कोइ ॥२॥
गावै को ताणु होवै किसै ताणु ॥
गावै को दाति जाणै नीसाणु ॥
गावै को गुण वडिआईआ चार ॥
गावै को विदिआ विखमु वीचारु ॥
गावै को साजि करे तनु खेह ॥
गावै को जीअ लै फिरि देह ॥
गावै को जापै दिसै दूरि ॥
गावै को वेखै हादरा हदूरि ॥
कथना कथी न आवै तोटि ॥
कथि कथि कथी कोटी कोटि कोटि ॥
देदा दे लैदे थकि पाहि ॥
जुगा जुगंतरि खाही खाहि ॥
हुकमी हुकमु चलाए राहु ॥
नानक विगसै वेपरवाहु ॥३॥
साचा साहिबु साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु ॥
आखहि मंगहि देहि देहि दाति करे दातारु ॥
फेरि कि अगै रखीऐ जितु दिसै दरबारु ॥
मुहौ कि बोलणु बोलीऐ जितु सुणि धरे पिआरु ॥
अमृत वेला सचु नाउ वडिआई वीचारु ॥
करमी आवै कपड़ा नदरी मोखु दुआरु ॥
नानक एवै जाणीऐ सभु आपे सचिआरु ॥४॥
थापिआ न जाइ कीता न होइ ॥
आपे आपि निरंजनु सोइ ॥
जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु ॥
नानक गावीऐ गुणी निधानु ॥
गावीऐ सुणीऐ मनि रखीऐ भाउ ॥
दुखु परहरि सुखु घरि लै जाइ ॥
गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं गुरमुखि रहिआ समाई ॥
गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई ॥
जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथनु न जाई ॥
गुरा इक देहि बुझाई ॥
सभना जीआ का इकु दाता सो मै विसरि न जाई ॥५॥ अंग 1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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