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7. मंगल

मंगल के शाब्दिक अर्थ आनन्द, खुशी व उत्साह हैं। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में मंगल का प्रयोग शीर्षक के रूप में दो बार किया गया है– छंत बिलावल महला 4 मंगल व बिलावल महला 5 छंत मंगल। इस शीर्षक के नीचे दर्ज बाणी खुशी के भावों को ही रूपमान करती है। बेशक इन शीर्षकों के इलावा मंगल शब्द का प्रयोग बहु-अर्थों में भी हुआ है।

उदाहरण के लिएः
छंत बिलावलु महला ४ मंगल ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
मेरा हरि प्रभु सेजै आइआ मनु सुखि समाणा राम ॥
गुरि तुठै हरि प्रभु पाइआ रंगि रलीआ माणा राम ॥
वडभागीआ सोहागणी हरि मसतकि माणा राम ॥
हरि प्रभु हरि सोहागु है नानक मनि भाणा राम ॥१॥
निमाणिआ हरि माणु है हरि प्रभु हरि आपै राम ॥
गुरमुखि आपु गवाइआ नित हरि हरि जापै राम ॥
मेरे हरि प्रभ भावै सो करै हरि रंगि हरि रापै राम ॥
जनु नानकु सहजि मिलाइआ हरि रसि हरि ध्रापै राम ॥२॥
माणस जनमि हरि पाईऐ हरि रावण वेरा राम ॥
गुरमुखि मिलु सोहागणी रंगु होइ घणेरा राम ॥
जिन माणस जनमि न पाइआ तिन्ह भागु मंदेरा राम ॥
हरि हरि हरि हरि राखु प्रभ नानकु जनु तेरा राम ॥३॥
गुरि हरि प्रभु अगमु द्रिड़ाइआ मनु तनु रंगि भीना राम ॥
भगति वछलु हरि नामु है गुरमुखि हरि लीना राम ॥
बिनु हरि नाम न जीवदे जिउ जल बिनु मीना राम ॥
सफल जनमु हरि पाइआ नानक प्रभि कीना राम ॥४॥१॥३॥
अंग 844

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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