3. सोलहे
आमतौर पर जो भी रचना 16 पदों वाली होती है उसे ‘सोलहा’ कहा जाता है परन्तु गुरू
साहिब के सम्पादन की विलक्षणता यह है कि उन्होंने इस बँधन को कई जगह स्वीकार नहीं
किया क्योंकि श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में 9, 15 और यहाँ तक कि 21 पदों में भी
‘सोलहे’ को दर्ज किया गया है। इन बाणियों का विषय सँसार की उत्पति तथा उसके विकास
से जुड़ा है और प्रभु की सृजना की हुई दुनिया की सुन्दरता का बहुत ही सुन्दर वर्णन
भी है।
उदाहरण के लिएः
मारू सोलहे महला १ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
साचा सचु सोई अवरु न कोई ॥
जिनि सिरजी तिन ही फुनि गोई ॥
जिउ भावै तिउ राखहु रहणा तुम सिउ किआ मुकराई हे ॥१॥
आपि उपाए आपि खपाए ॥ आपे सिरि सिरि धंधै लाए ॥
आपे वीचारी गुणकारी आपे मारगि लाई हे ॥२॥
आपे दाना आपे बीना ॥ आपे आपु उपाइ पतीना ॥
आपे पउणु पाणी बैसंतरु आपे मेलि मिलाई हे ॥३॥
आपे ससि सूरा पूरो पूरा ॥ आपे गिआनि धिआनि गुरु सूरा ॥
कालु जालु जमु जोहि न साकै साचे सिउ लिव लाई हे ॥४॥
आपे पुरखु आपे ही नारी ॥ आपे पासा आपे सारी ॥
आपे पिड़ बाधी जगु खेलै आपे कीमति पाई हे ॥५॥
आपे भवरु फुलु फलु तरवरु ॥ आपे जलु थलु सागरु सरवरु ॥
आपे मछु कछु करणीकरु तेरा रूपु न लखणा जाई हे ॥६॥
आपे दिनसु आपे ही रैणी ॥ आपि पतीजै गुर की बैणी ॥
आदि जुगादि अनाहदि अनदिनु घटि घटि सबदु रजाई हे ॥७॥
आपे रतनु अनूपु अमोलो ॥ आपे परखे पूरा तोलो ॥
आपे किस ही कसि बखसे आपे दे लै भाई हे ॥८॥
आपे धनखु आपे सरबाणा ॥ आपे सुघड़ु सरूपु सिआणा ॥
कहता बकता सुणता सोई आपे बणत बणाई हे ॥९॥
पउणु गुरू पाणी पित जाता ॥ उदर संजोगी धरती माता ॥
रैणि दिनसु दुइ दाई दाइआ जगु खेलै खेलाई हे ॥१०॥
आपे मछुली आपे जाला ॥ आपे गऊ आपे रखवाला ॥
सरब जीआ जगि जोति तुमारी जैसी प्रभि फुरमाई हे ॥११॥
आपे जोगी आपे भोगी ॥ आपे रसीआ परम संजोगी ॥
आपे वेबाणी निरंकारी निरभउ ताड़ी लाई हे ॥१२॥
खाणी बाणी तुझहि समाणी ॥ जो दीसै सभ आवण जाणी ॥
सेई साह सचे वापारी सतिगुरि बूझ बुझाई हे ॥१३॥
सबदु बुझाए सतिगुरु पूरा ॥ सरब कला साचे भरपूरा ॥
अफरिओ वेपरवाहु सदा तू ना तिसु तिलु न तमाई हे ॥१४॥
कालु बिकालु भए देवाने ॥ सबदु सहज रसु अंतरि माने ॥
आपे मुकति त्रिपति वरदाता भगति भाइ मनि भाई हे ॥१५॥
आपि निरालमु गुर गम गिआना ॥ जो दीसै तुझ माहि समाना ॥
नानकु नीचु भिखिआ दरि जाचै मै दीजै नामु वडाई हे ॥१६॥१॥
अंग 1020