SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

19. फुनहे

भारतीय परम्परा में खुशी के समय के गीत भाव बच्चे का जन्म, दुल्हे व दुल्हन की तैयारी आदि के समय गायन किए जाने वाले गीतों को ‘फुनहे’ कहा जाता है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में हर समय को मँगलमयी समझा जाता है तथा उपदेश किया गया है कि हर समय उस प्रीतम प्यारे की स्तुति में गायन करना ताकि ‘इह लोक सुखीए परलोक सुहेले’ का प्रसँग स्थापित हो सके।

उदाहरण के लिएः
फुनहे महला ५ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हाथि कलम अगम मसतकि लेखावती ॥
उरझि रहिओ सभ संगि अनूप रूपावती ॥
उसतति कहनु न जाइ मुखहु तुहारीआ ॥
मोही देखि दरसु नानक बलिहारीआ ॥१॥
संत सभा महि बैसि कि कीरति मै कहां ॥
अरपी सभु सीगारु एहु जीउ सभु दिवा ॥
आस पिआसी सेज सु कंति विछाईऐ ॥
हरिहां मसतकि होवै भागु त साजनु पाईऐ ॥२॥
सखी काजल हार त्मबोल सभै किछु साजिआ ॥
सोलह कीए सीगार कि अंजनु पाजिआ ॥
जे घरि आवै कंतु त सभु किछु पाईऐ ॥
हरिहां कंतै बाझु सीगारु सभु बिरथा जाईऐ ॥३॥
जिसु घरि वसिआ कंतु सा वडभागणे ॥
तिसु बणिआ हभु सीगारु साई सोहागणे ॥
हउ सुती होइ अचिंत मनि आस पुराईआ ॥
हरिहां जा घरि आइआ कंतु त सभु किछु पाईआ ॥४॥
आसा इती आस कि आस पुराईऐ ॥
सतिगुर भए दइआल त पूरा पाईऐ ॥
मै तनि अवगण बहुतु कि अवगण छाइआ ॥
हरिहां सतिगुर भए दइआल त मनु ठहराइआ ॥५॥
कहु नानक बेअंतु बेअंतु धिआइआ ॥
दुतरु इहु संसारु सतिगुरू तराइआ ॥
मिटिआ आवा गउणु जां पूरा पाइआ ॥
हरिहां अमृतु हरि का नामु सतिगुर ते पाइआ ॥६॥
मेरै हाथि पदमु आगनि सुख बासना ॥
सखी मोरै कंठि रतंनु पेखि दुखु नासना ॥
बासउ संगि गुपाल सगल सुख रासि हरि ॥
हरिहां रिधि सिधि नव निधि बसहि जिसु सदा करि ॥७॥
पर त्रिअ रावणि जाहि सेई ता लाजीअहि ॥
नितप्रति हिरहि पर दरबु छिद्र कत ढाकीअहि ॥
हरि गुण रमत पवित्र सगल कुल तारई ॥
हरिहां सुनते भए पुनीत पारब्रह्मु बीचारई ॥८॥
ऊपरि बनै अकासु तलै धर सोहती ॥
दह दिस चमकै बीजुलि मुख कउ जोहती ॥
खोजत फिरउ बिदेसि पीउ कत पाईऐ ॥
हरिहां जे मसतकि होवै भागु त दरसि समाईऐ ॥९॥
डिठे सभे थाव नही तुधु जेहिआ ॥
बधोहु पुरखि बिधातै तां तू सोहिआ ॥
वसदी सघन अपार अनूप रामदास पुर ॥
हरिहां नानक कसमल जाहि नाइऐ रामदास सर ॥१०॥
चात्रिक चित सुचित सु साजनु चाहीऐ ॥
जिसु संगि लागे प्राण तिसै कउ आहीऐ ॥
बनु बनु फिरत उदास बूंद जल कारणे ॥
हरिहां तिउ हरि जनु मांगै नामु नानक बलिहारणे ॥११॥
मित का चितु अनूपु मरमु न जानीऐ ॥
गाहक गुनी अपार सु ततु पछानीऐ ॥
चितहि चितु समाइ त होवै रंगु घना ॥
हरिहां चंचल चोरहि मारि त पावहि सचु धना ॥१२॥
सुपनै ऊभी भई गहिओ की न अंचला ॥
सुंदर पुरख बिराजित पेखि मनु बंचला ॥
खोजउ ता के चरण कहहु कत पाईऐ ॥
हरिहां सोई जतंनु बताइ सखी प्रिउ पाईऐ ॥१३॥
नैण न देखहि साध सि नैण बिहालिआ ॥
करन न सुनही नादु करन मुंदि घालिआ ॥
रसना जपै न नामु तिलु तिलु करि कटीऐ ॥
हरिहां जब बिसरै गोबिद राइ दिनो दिनु घटीऐ ॥१४॥
पंकज फाथे पंक महा मद गुमफिआ ॥
अंग संग उरझाइ बिसरते सु्मफिआ ॥
है कोऊ ऐसा मीतु जि तोरै बिखम गांठि ॥
नानक इकु स्रीधर नाथु जि टूटे लेइ सांठि ॥१५॥
धावउ दसा अनेक प्रेम प्रभ कारणे ॥
पंच सतावहि दूत कवन बिधि मारणे ॥
तीखण बाण चलाइ नामु प्रभ ध्याईऐ ॥
हरिहां महां बिखादी घात पूरन गुरु पाईऐ ॥१६॥
सतिगुर कीनी दाति मूलि न निखुटई ॥
खावहु भुंचहु सभि गुरमुखि छुटई ॥
अमृतु नामु निधानु दिता तुसि हरि ॥
नानक सदा अराधि कदे न जांहि मरि ॥१७॥
जिथै जाए भगतु सु थानु सुहावणा ॥
सगले होए सुख हरि नामु धिआवणा ॥
जीअ करनि जैकारु निंदक मुए पचि ॥
साजन मनि आनंदु नानक नामु जपि ॥१८॥
पावन पतित पुनीत कतह नही सेवीऐ ॥
झूठै रंगि खुआरु कहां लगु खेवीऐ ॥
हरिचंदउरी पेखि काहे सुखु मानिआ ॥
हरिहां हउ बलिहारी तिंन जि दरगहि जानिआ ॥१९॥
कीने करम अनेक गवार बिकार घन ॥
महा द्रुगंधत वासु सठ का छारु तन ॥
फिरतउ गरब गुबारि मरणु नह जानई ॥
हरिहां हरिचंदउरी पेखि काहे सचु मानई ॥२०॥
जिस की पूजै अउध तिसै कउणु राखई ॥
बैदक अनिक उपाव कहां लउ भाखई ॥
एको चेति गवार काजि तेरै आवई ॥
हरिहां बिनु नावै तनु छारु ब्रिथा सभु जावई ॥२१॥
अउखधु नामु अपारु अमोलकु पीजई ॥
मिलि मिलि खावहि संत सगल कउ दीजई ॥
जिसै परापति होइ तिसै ही पावणे ॥
हरिहां हउ बलिहारी तिंन्ह जि हरि रंगु रावणे ॥२२॥
वैदा संदा संगु इकठा होइआ ॥
अउखद आए रासि विचि आपि खलोइआ ॥
जो जो ओना करम सुकर्म होइ पसरिआ ॥
हरिहां दूख रोग सभि पाप तन ते खिसरिआ ॥२३॥
अंग 1361

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.