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18. गाथा

श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में सहसकृति सलोकों के पश्चात् ‘गाथा’ का प्रयोग किया गया है। असल में यह एक छँत रूप है। छँत का भाव प्रायः गायन से भी लिया जाता है जो किसी विशेष प्रसँग गाथा को गीत रूप में पेश करता है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में गाथा रचना द्वारा मनुष्य को अवगुण छोड़ने और परमात्म नाम से जोड़ने के साथ साथ परमात्मा के नाम सिमरन की प्राप्तियों का ब्यौरा भी दिया गया है।

उदाहरण के लिएः
महला ५ गाथा ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
करपूर पुहप सुगंधा परस मानुख्य देहं मलीणं ॥
मजा रुधिर द्रुगंधा नानक अथि गरबेण अग्यानणो ॥१॥
परमाणो परजंत आकासह दीप लोअ सिखंडणह ॥
गछेण नैण भारेण नानक बिना साधू न सिध्यते ॥२॥
जाणो सति होवंतो मरणो द्रिसटेण मिथिआ ॥
कीरति साथि चलंथो भणंति नानक साध संगेण ॥३॥
माया चित भरमेण इसट मित्रेखु बांधवह ॥
लबध्यं साध संगेण नानक सुख असथानं गोपाल भजणं ॥४॥
मैलागर संगेण निमु बिरख सि चंदनह ॥
निकटि बसंतो बांसो नानक अहं बुधि न बोहते ॥५॥
गाथा गु्मफ गोपाल कथं मथं मान मरदनह ॥
हतं पंच सत्रेण नानक हरि बाणे प्रहारणह ॥६॥
बचन साध सुख पंथा लहंथा बड करमणह ॥
रहंता जनम मरणेन रमणं नानक हरि कीरतनह ॥७॥
पत्र भुरिजेण झड़ीयं नह जड़ीअं पेड स्मपता ॥
नाम बिहूण बिखमता नानक बहंति जोनि बासरो रैणी ॥८॥
भावनी साध संगेण लभंतं बड भागणह ॥
हरि नाम गुण रमणं नानक संसार सागर नह बिआपणह ॥९॥
गाथा गूड़ अपारं समझणं बिरला जनह ॥
संसार काम तजणं नानक गोबिंद रमणं साध संगमह ॥१०॥
सुमंत्र साध बचना कोटि दोख बिनासनह ॥
हरि चरण कमल ध्यानं नानक कुल समूह उधारणह ॥११॥
सुंदर मंदर सैणह जेण मध्य हरि कीरतनह ॥
मुकते रमण गोबिंदह नानक लबध्यं बड भागणह ॥१२॥
हरि लबधो मित्र सुमितो ॥
बिदारण कदे न चितो ॥
जा का असथलु तोलु अमितो ॥ सु
ई नानक सखा जीअ संगि कितो ॥१३॥
अपजसं मिटंत सत पुत्रह ॥
सिमरतब्य रिदै गुर मंत्रणह ॥
प्रीतम भगवान अचुत ॥
नानक संसार सागर तारणह ॥१४॥
मरणं बिसरणं गोबिंदह ॥
जीवणं हरि नाम ध्यावणह ॥
लभणं साध संगेण ॥
नानक हरि पूरबि लिखणह ॥१५॥
दसन बिहून भुयंगं मंत्रं गारुड़ी निवारं ॥
ब्याधि उपाड़ण संतं ॥
नानक लबध करमणह ॥१६॥
जथ कथ रमणं सरणं सरबत्र जीअणह ॥
तथ लगणं प्रेम नानक ॥ परसादं गुर दरसनह ॥१७॥
चरणारबिंद मन बिध्यं ॥
सिध्यं सरब कुसलणह ॥
गाथा गावंति नानक भब्यं परा पूरबणह ॥१८॥
सुभ बचन रमणं गवणं साध संगेण उधरणह ॥
संसार सागरं नानक पुनरपि जनम न लभ्यते ॥१९॥
बेद पुराण सासत्र बीचारं ॥
एकंकार नाम उर धारं ॥
कुलह समूह सगल उधारं ॥
बडभागी नानक को तारं ॥२०॥
सिमरणं गोबिंद नामं उधरणं कुल समूहणह ॥
लबधिअं साध संगेण नानक वडभागी भेटंति दरसनह ॥२१॥
सरब दोख परंतिआगी सरब धरम द्रिड़ंतणः ॥
लबधेणि साध संगेणि नानक मसतकि लिख्यणः ॥२२॥
होयो है होवंतो हरण भरण स्मपूरणः ॥
साधू सतम जाणो नानक प्रीति कारणं ॥२३॥
सुखेण बैण रतनं रचनं कसुमभ रंगणः ॥
रोग सोग बिओगं नानक सुखु न सुपनह ॥२४॥ अंग 1360

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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