11. रुती
रुती से भाव ऋतु है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में इस काव्य रूप का प्रयोग गुरू
अरजन पातशाह ने किया है जिसमें छः ऋतुओं का वर्णन है। इसमें परमात्मा को मिलने के
भिन्न भिन्न पड़ावों का जिक्र है और उससे बिछुड़ने से पैदा होने वाली चाह को भी प्रकट
किया है। इस चाह का केवल एक हल है परमात्मा का सिमरन।
उदाहरण के लिएः
रामकली महला ५ रुती सलोकु ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
करि बंदन प्रभ पारब्रह्म बाछउ साधह धूरि ॥
आपु निवारि हरि हरि भजउ नानक प्रभ भरपूरि ॥१॥
किलविख काटण भै हरण सुख सागर हरि राइ ॥
दीन दइआल दुख भंजनो नानक नीत धिआइ ॥२॥ छंतु ॥
जसु गावहु वडभागीहो करि किरपा भगवंत जीउ ॥
रुती माह मूरत घड़ी गुण उचरत सोभावंत जीउ ॥
गुण रंगि राते धंनि ते जन जिनी इक मनि धिआइआ ॥
सफल जनमु भइआ तिन का जिनी सो प्रभु पाइआ ॥
पुंन दान न तुलि किरिआ हरि सरब पापा हंत जीउ ॥
बिनवंति नानक सिमरि जीवा जनम मरण रहंत जीउ ॥१॥ सलोक ॥
उदमु अगमु अगोचरो चरन कमल नम्सकार ॥
कथनी सा तुधु भावसी नानक नाम अधार ॥१॥
संत सरणि साजन परहु सुआमी सिमरि अनंत ॥
सूके ते हरिआ थीआ नानक जपि भगवंत ॥२॥ छंतु ॥
रुति सरस बसंत माह चेतु वैसाख सुख मासु जीउ ॥
हरि जीउ नाहु मिलिआ मउलिआ मनु तनु सासु जीउ ॥
घरि नाहु निहचलु अनदु सखीए चरन कमल प्रफुलिआ ॥
सुंदरु सुघड़ु सुजाणु बेता गुण गोविंद अमुलिआ ॥
वडभागि पाइआ दुखु गवाइआ भई पूरन आस जीउ ॥
बिनवंति नानक सरणि तेरी मिटी जम की त्रास जीउ ॥२॥ अंग 927