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1. पदा

आम करके छँत के एक भाग को ही पदा कहा जाता है। गुरूबाणी में पदे का प्रयोग बँद के लिए भी किया गया है। इसमें दो बँद वाले शब्द ‘दुपदे’ तीन बँद वाले ‘तिपदे’ चार बँद वाले ‘चउपदे’ और पाँच बँद वाले शब्द को ‘पंचपदे’ का नाम दिया गया है। असल में जो भी काव्य रूप मात्रा के नियम में आ जाता है, उसे ‘पद’ की सँज्ञा दी जाती है। गुरबाणी में ‘इकतुके’ शीर्षक के नीचे अनेक शब्द मिलते हैं। जिस शब्द में हरेक पद में मिलते तुकाँत वाली दो छोटी छोटी पंक्तियाँ हों, पर उन्हें इक्ट्ठे एक तुक की तरह बोलने से एक सम्पूर्ण विचार बनती हो, उसे ‘इकतुका’ कहा जाता है। जिस शब्द में हरेक पदे में मिलते जुलते तुकाँत वाली तीन-तीन तुकें हों, उसे ‘तितुका’ कहा जाता है। उदाहरण के लिएः

1. इकतुकाः
आसावरी महला ५ इकतुका ॥
ओइ परदेसीआ हां ॥ सुनत संदेसिआ हां ॥१॥ रहाउ ॥
जा सिउ रचि रहे हां ॥ सभ कउ तजि गए हां ॥
सुपना जिउ भए हां ॥ हरि नामु जिन्हि लए ॥१॥
हरि तजि अन लगे हां ॥ जनमहि मरि भगे हां ॥
हरि हरि जनि लहे हां ॥ जीवत से रहे हां ॥
जिसहि क्रिपालु होइ हां ॥ नानक भगतु सोइ ॥२॥७॥१६३॥२३२॥

2. दुपदेः
आसा स्री कबीर जीउ के दुपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
हीरै हीरा बेधि पवन मनु सहजे रहिआ समाई ॥
सगल जोति इनि हीरै बेधी सतिगुर बचनी मै पाई ॥१॥
हरि की कथा अनाहद बानी ॥
हंसु हुइ हीरा लेइ पछानी ॥१॥ रहाउ ॥
कहि कबीर हीरा अस देखिओ जग मह रहा समाई ॥
गुपता हीरा प्रगट भइओ जब गुर गम दीआ दिखाई ॥२॥१॥३१॥

3. तिपदेः
गूजरी महला ५ तिपदे घरु २ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
दुख बिनसे सुख कीआ निवासा त्रिसना जलनि बुझाई ॥
नामु निधानु सतिगुरू द्रिड़ाइआ बिनसि न आवै जाई ॥१॥
हरि जपि माइआ बंधन तूटे ॥
भए क्रिपाल दइआल प्रभ मेरे साधसंगति मिलि छूटे ॥१॥ रहाउ ॥
आठ पहर हरि के गुन गावै भगति प्रेम रसि माता ॥
हरख सोग दुहु माहि निराला करणैहारु पछाता ॥२॥
जिस का सा तिन ही रखि लीआ सगल जुगति बणि आई ॥
कहु नानक प्रभ पुरख दइआला कीमति कहणु न जाई ॥३॥१॥९॥

4. तितुकाः
आसा महला १ तितुका ॥
कोई भीखकु भीखिआ खाइ ॥ कोई राजा रहिआ समाइ ॥
किस ही मानु किसै अपमानु ॥ ढाहि उसारे धरे धिआनु ॥
तुझ ते वडा नाही कोइ ॥ किसु वेखाली चंगा होइ ॥१॥
मै तां नामु तेरा आधारु ॥ तूं दाता करणहारु करतारु ॥१॥ रहाउ ॥
वाट न पावउ वीगा जाउ ॥ दरगह बैसण नाही थाउ ॥
मन का अंधुला माइआ का बंधु ॥ खीन खराबु होवै नित कंधु ॥
खाण जीवण की बहुती आस ॥ लेखै तेरै सास गिरास ॥२॥
अहिनिसि अंधुले दीपकु देइ ॥ भउजल डूबत चिंत करेइ ॥
कहहि सुणहि जो मानहि नाउ ॥ हउ बलिहारै ता कै जाउ ॥
नानकु एक कहै अरदासि ॥ जीउ पिंडु सभु तेरै पासि ॥३॥
जां तूं देहि जपी तेरा नाउ ॥ दरगह बैसण होवै थाउ ॥
जां तुधु भावै ता दुरमति जाइ ॥ गिआन रतनु मनि वसै आइ ॥
नदरि करे ता सतिगुरु मिलै ॥ प्रणवति नानकु भवजलु तरै ॥४॥१८॥

5. चउपदेः
गूजरी महला ५ घरु ४ चउपदे ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
छाडि सगल सिआणपा साध सरणी आउ ॥
पारब्रह्म परमेसरो प्रभू के गुण गाउ ॥१॥
रे चित चरण कमल अराधि ॥
सरब सूख कलिआण पावहि मिटै सगल उपाधि ॥१॥ रहाउ ॥
मात पिता सुत मीत भाई तिसु बिना नही कोइ ॥
ईत ऊत जीअ नालि संगी सरब रविआ सोइ ॥२॥
कोटि जतन उपाव मिथिआ कछु न आवै कामि ॥
सरणि साधू निरमला गति होइ प्रभ कै नामि ॥३॥
अगम दइआल प्रभू ऊचा सरणि साधू जोगु ॥
तिसु परापति नानका जिसु लिखिआ धुरि संजोगु ॥४॥१॥२७॥

6. पंचपदेः
आसा महला १ पंचपदे ॥
दुध बिनु धेनु पंख बिनु पंखी जल बिनु उतभुज कामि नाही ॥
किआ सुलतानु सलाम विहूणा अंधी कोठी तेरा नामु नाही ॥१॥
की विसरहि दुखु बहुता लागै ॥
दुखु लागै तूं विसरु नाही ॥१॥ रहाउ ॥
अखी अंधु जीभ रसु नाही कंनी पवणु न वाजै ॥
चरणी चलै पजूता आगै विणु सेवा फल लागे ॥२॥
अखर बिरख बाग भुइ चोखी सिंचित भाउ करेही ॥
सभना फलु लागै नामु एको बिनु करमा कैसे लेही ॥३॥
जेते जीअ तेते सभि तेरे विणु सेवा फलु किसै नाही ॥
दुखु सुखु भाणा तेरा होवै विणु नावै जीउ रहै नाही ॥४॥
मति विचि मरणु जीवणु होरु कैसा जा जीवा तां जुगति नाही ॥
कहै नानकु जीवाले जीआ जह भावै तह राखु तुही ॥५॥१९॥

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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