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8. श्री गुरू नानक देव साहिब जी

सिक्ख धर्म के सँस्थापक श्री गुरू नानक देव जी का प्रकाश 1469 ईस्वी में राए भोई की तलवँडी श्री ननकाणा साहिब में महता कालू व माता तृप्ता जी के घर हुआ। पिता का सम्बन्ध अमीर परिवार से था व पेशा पटवारी का था। आपकी, आप से बड़ी एक बहन थी जिसे सिक्ख इतिहास में बेबे नानकी के नाम से याद किया जाता है। आप जी का बचपन गाँव में ही बीता जहाँ आप ने पंडित गोपाल, बृज लाल व मौलवी जी से शिक्षा ग्रहण की।‘जन्मसाखी’ के अनुसार आप जी की महत्वपूर्ण रचना ‘पटी’ विद्यालय जाने के पहले दिन व उम्र के सातवें वर्ष में लिखी गई थी। पहली बार अध्यापक को विद्यार्थी ‘पैंती’ (वर्णमाला के पैंतीस अक्षर) के अर्थ समझा रहा है। अध्यापक बच्चे का मुँह ताक रहा है व अवस्था सुन्न हो गई है। बच्चे की उम्र और अर्थों की गहराई हैरानी पैदा कर रही है। अध्यापक बच्चे को लेकर महता कालू के पास पहुँचा और बालक को पढ़ाने से इन्कार कर दिया। साथ ही, कहा, ‘पढ़े हुए को कौन पढ़ाए ! बाबा जी ! यह दुनिया को पढ़ाए।’ नौ वर्ष की उम्र में जनेऊ की रस्म से इन्कार एवँ ‘सच्चे सौदे’ का व्यापार करके पिता का क्रोध चरमसीमा पर पहुँच गया। अठारह वर्ष की उम्र में पिता को आपका विवाह नज़र आया और माता सुलखणी का चुनाव आपकी जीवन-साथिन के रूप में कर दिया गया। दो साहिबजादे बाबा श्रीचँद व लखमीदास पैदा हुए पर गुरू साहिब न स्वभाव से बदले व न कर्म से। अन्त में भाई जयराम जी की सपुर्दगी में आप जी को सुल्तानपुर लोधी भेज दिया गया। भाई जय राम, बेबे नानकी के पति थे व सुल्तानपुर के हुक्मरान के विश्वासपात्र थे। भाई जयराम के प्रभाव से आप जी को मोदीखाने में नौकरी प्राप्त हुई पर "तेरा तेरा" के आलौकिक नाद ने जहाँ लोगों को धन्य किया, वहाँ विरोधियों ने मुँह में ऊँगलियाँ डाल लीं। सरकारे-दरबारे शिकायत हुई, पड़ताल हुई लेकिन हिसाब ठीक निकला। फिर गुरू साहिब ने चाबियाँ हाकम की दहलीज़ पर रखीं और ईश्वरीय ज्योति का सिमरन करते हुए वेई नदी जा पहुँचे। आप वहाँ से स्नान उपरान्त बाहर आए व ऐलान किया: ‘ना को हिन्दू न मुसलमान’। इस रहस्य को समझने वालों ने सिर झुका लिया तथा दूसरों ने नानक को ‘कमला’ गर्दाना कहा। इसकी पुष्टि गुरू साहिब करते हुए फरमाते हैं:

कोई आखै भूतना को कहै बेताला ॥
कोई आखै आदमी नानकु वेचारा ॥१॥ अंग 991

अब उदासियों का आरम्भ था व भाई मरदाना का संग। सँसार की चारों दिशाओं की ओर सच, धर्म व प्रभु की आह भरी। उदासियों के उपरान्त आपने करतारपुर नगर बसाया, खेती शुरू कर दी और एक प्रभु, एक मानवता और एक समाज का उपदेश दिया। आपने संगत व लँगर की प्रथा कायम की। करतारपुर में ही "लहिणा" नाम का एक व्यक्ति गुरू चरणों की धूल प्राप्त कर गुरू अंगद बन गया। गुरू नानक साहिब ने भाई लहिणा को अपने जीवनकाल में ही गुरगद्दी प्रदान करके यह बता दिया कि विरासत की कसौटी योग्यता है, जन्म नहीं। गुरू नानक देव जी 1539 ईस्वी में श्री करतारपुर में ही ज्योति जोति समा गए।
बाणी रचना: 974 शब्द, 19 रागों में
प्रमुख बाणियाँ: जपु, पहरे, वार माझ, पटी, अलाहणीआ, कुचजी, सुचजी, थिती, ओअंकार, सिद्ध गोसटि, बारह माहा, आसा की वार व वार मलार।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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