7. श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में आए
बाणीकारों की तरतीब
श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में अनेक भाषाओं के शब्द मौजूद हैं
लेकिन इनका प्रकटाव गुरमुखी लिपि में किया गया है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में
अंकित बाणी की भाषा में पँजाबी, सधूकड़ी, प्राकृत, अपभ्रँश, बृज, अवधी, गुजराती,
मराठी, बँगला व फारसी आदि के शब्दों का मिश्रण है। पँचम पातशाह गुरू अरजन देव जी एक
ऐसे धर्म ग्रँथ की सम्पादना करना चाहते थे जो राष्ट्रीय एवँ अन्तर्राष्ट्रीय सरहदों
को तोड़ता हुआ साँसारिक स्तर पर स्थापित हो, इसीलिए जहाँ इसमें गुरू साहिबान की बाणी
अंकित की गई, वहाँ साथ ही हिन्दू भगतों व मुसलमान पीर-फकीरों की बाणी को भी योग्य
स्थान देकर सम्मान दिया गया। श्री गुरू ग्रँथ साहिब में 6 गुरू साहिबान, 15 भगत
साहिबान, 11 भट व 4 गुर सिक्ख– कुल 36 बाणीकारों की बाणी शामिल है। इस तरह यह सँसार
का प्रथम ऐसा धर्म ग्रँथ है जिसमें न केवल भिन्न भिन्न धर्मों बल्कि भिन्न भिन्न
सभ्याचारों, बोलियों व जातियों के मनुष्यों को स्थान देकर मानव सम्मान को शिखर पर
पहुँचाया गया है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में बाणी अंकित करने की केवल एक कसौटी,
गुरू नानक पातशाह के सिद्धान्त हैं, ना कि जाति की उत्तमता, इसीलिए जहाँ भगत रविदास
जी चमार जाति से सम्बन्धित हैं, वहीं भगत रामानन्द जी ब्राह्मण हैं लेकिन गुरू घर
जन्म उत्तमता को नकारता है और बौद्धिक उत्तमता को स्वीकार करता है। श्री गुरू ग्रँथ
साहिब जी में बाणीकारों को प्रत्येक राग आरम्भ होने पर एक क्रम में रखा गया है:
1. पहले गुरू साहिबान की बाणी क्रम अनुसार
2. फिर भक्तों की बाणी
3. भटटों की बाणी
4. गुर सिक्ख बाणीकारों की रचना
गुरू साहिबान: गुरू साहिबान की सारी बाणी ‘नानक’ छाप से दर्ज है
लेकिन यह बताने के लिए कि यह बाणी किस गुरू साहिबान की है, ‘महला’ शब्द का प्रयोग
किया गया है। ‘महला’ अरबी भाषा के शब्द हलूल से लिया माना जाता है। हलूल का अर्थ
है– उतरने का स्थान। दूसरा ‘महला’ के अर्थ शरीर के लिए भी किए जाते हैं। श्री गुरू
ग्रँथ साहिब जी में पहले पाँच गुरू साहिबान व नौवें गुरू साहिब की बाणी दर्ज है:
महला 1 का भाव श्री गुरू नानक देव जी
महला 2 का भाव श्री गुरू अंगद देव जी
महला 3 का भाव श्री गुरू अमर दास जी
महला 4 का भाव श्री गुरू राम दास जी
महला 5 का भाव श्री गुरू अरजन देव जी
महला 9 का भाव श्री गुरू तेग बहादर जी