36. मानव एकता
सिक्ख धर्म का मुख्य निशाना ईश्वरीय एकता, मानव एकता एवँ सामाजिक एकता है। श्री गुरू
ग्रँथ साहिब जी ने ‘इकस पिता इकस के हम बारिक’ तथा ‘कुदरति के सभि बंदे’ का एलान
करके मनुष्य मनुष्य में खड़े किए हर भेदभाव को मानने से पूर्णतया इन्कार कर दिया।
श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी ने जाति प्रथा एवँ ऊँच-नीच जैसी सामाजिक बुराइयों का
पुरज़ोर निषेध किया है और सब मनुष्यों को एक बड़ी ज्योति से उपजा हुआ बताया है:
सगल बनसपति महि बैसँतरु सगल दूध महि धीआ ।।
ऊच नीच महि जोति समाणी घटि घटि माधउ जीआ ।। अंग 617
श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी ने इस एलाननामे से एक नई चेतना की लहर
खड़ी कर दी। इससे तथाकथित नीचों, दलितों व आर्थिक तौर पर शोषित वर्ग के अन्दर एक नई
चेतना का विकास हुआ, जिसने आने वाले समय में नई ऐतिहासिक सृजना कर ‘नीचह ऊच करै मेरा
गोबिंदु’ का प्रसंग स्थापित कर दिया। गुरू साहिब ने जहाँ प्रचलित भारतीय जाति-पाति
प्रथा का निषेध किया, वहीं श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी का अपना स्वरूप इस बात का
प्रत्यक्ष प्रमाण है कि गुरू साहिब जी का सिद्धाँत "सांझ करीजे गुणह केरी" या न कि
"ऊँच-नीच"। गुरू साहिब ने "शूद्र" व "ब्राह्मण", "हिन्दू" व "मुसलमान" का भेद
मिटाकर सारे भक्त साहिबान की बाणी को "एक जैसा" आदरभाव देकर अपनी "बाणी" के साथ
स्थान दिया।