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35. अकालपुरख (परमात्मा) की एकता

हर धर्म का केन्द्रीय सिद्धाँत किसी अद्भुत शक्ति में विश्वास है और यह सिद्धाँत ही धर्म की बुनियाद भी है लेकिन समस्या उस समय पैदा हो जाती है, जब सारे धर्म उपरोक्त सिद्धाँत को अपना आधरभूत स्वीकार करते हुए अकालपुरख की एकता का प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देते हैं। इस बात को साभी धर्म जैसे यहूदी, ईसाई, इस्लाम में भी देखा जा सकता है तथा भारतीय धर्म दर्शन के क्षेत्र में भी। यहूदी धर्म एक अकालपुरख (परमात्मा) में विश्वास का धारक है लेकिन वह अकालपुरख को अपने धर्म तक सीमित करके, यहूदी कौम को प्रभु की चुनी हुई कौम का अलग प्रसँग खड़ा कर देता है। ईसाई धर्म भी एक अकालपुरख में दृढ़ निश्चय रखता है तथा उसी को सारी कायनात का कादर भी स्वीकार करता है लेकिन साथ ही ऐसा सिद्धाँतक प्रसँग खड़ा कर देता है जिससे अकालपुरख का सँकल्प एवं कर्त्तव्य शँका में पड़ जाते हैं क्योंकि वह उस प्रभु की प्राप्ति का माध्यम केवल उसके पुत्र ‘यीसु मसीह’ को ही मानता है। बाईबल में अंकित है कि यीसु ही प्रभु के घर का द्वार है तथा जिसने उसे पाना है, उसे यीसु में से होकर निकलना पड़ेगा। हिन्दु धर्म में अकालपुरख (परमात्मा) का निरगुण व सरगुण वाला भेद, बहुदेववाद, विष्णु का अवतारवाद या उसे किसी एक रूप में प्रवान करके भी उसका तीन रूपों में प्रकटाव की कई उदाहरणें हैं। इस सबके नतीजे के तौर पर प्रभु को सबने अपने धर्म या अपने कब्जे में करने की कोशिश की और हर धर्म के लोग केवल अपने धर्म व धर्मग्रँथ को ही उच्चतम मानने लगे। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी ने अकालपुरख की एकता का एक विलक्षण प्रसँग स्थापित करते हुए अकालपुरख के द्वैत रूप पर ही कलम नहीं फेरी बल्कि एक प्रभु व एक लोकाई का अनोखा प्रसँग स्थापित करके हर प्रकार का वादविवाद ही समाप्त कर दिया। अकालपुरख का ‘एक’ होना जहाँ सामी धर्मों की वलगणों को तोड़ता था, वहीं उसके गुण– अकाल मूरति, अजूनी, सैभं ने यह अस्वीकार कर दिया कि वह अवतार धारण करने वाला हो ही नहीं सकता, भाव वह कि वह तो जन्म मरण के घेरे से बाहर है।

कहु नानक गुरि खोए भरम ।। एको अलहु पारब्रहम ।। अंग 897

साथ ही गुरू साहिब ने सारी कायनात को एक में से उपजी बता कर अकालपुरख की प्राप्ति के लिए ज़बरी धर्म परिवर्तनों को पूर्णतया मानने से इन्कार कर दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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