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32. बाबा सुंदर जी

बाबा सुंदर जी का संबंध गुरू अमरदास जी के परिवार से है। आप गुरू अमरदास जी के साहिबजादे बाबा मोहरी जी के पौत्र व भाई अनंद जी के पुत्र थे। इस तरह आप गुरू अमरदास जी के पड़-पौत्र हुए। बाबा सुंदर जी की बाणी ‘सदु’ राम रामकली में श्री गुरू ग्रँथ साहिब के अँग 923 पर सुशोभित है। ‘सदु’ का शब्दिक अर्थ बुलावा है। आप जी की रचना ‘सदु’ की 6 पउड़िया हैं। इस रचना का मुख्य आधार रजा मानना है, जगत चलायेमान है तथा इस सत्य को स्वीकार करते हुए मरने पर रोना-धोना न करने का उपदेश है। इस बाणी का साराँश इस प्रकार है कि गुरू अमरदास जी ने अपने अन्तिम समय परिवार को हुक्म किया कि: 1. उनकी मौत के बाद किसी ने "रोना" नहीं है। रोने का मतलब प्रभु की मर्जी को अस्वीकार करना होगा। 2. मेरे जाने के पश्चात् "गुरबाणी" का रस भरपूर "कीर्तन" करना व "अकालपुरख" (परमात्मा) की कथाएँ कहनी व सुननी। 3. कोई भी मनमत वाला कर्मकाण्ड नहीं करना । अगले गुरू के तौर पर ‘रामदास जी’ में अपना आपा रखकर गुरू पदवी दे दी। आप जी की बाणी का रूप इस प्रकार है:

जगि दाता सोइ भगति वछलु तिहु लोइ जीउ ॥
गुर सबदि समावए अवरु न जाणै कोइ जीउ ॥
अवरो न जाणहि सबदि गुर कै एकु नामु धिआवहे ॥
परसादि नानक गुरू अंगद परम पदवी पावहे ॥
आइआ हकारा चलणवारा हरि राम नामि समाइआ ॥
जगि अमरु अटलु अतोलु ठाकुरु भगति ते हरि पाइआ ॥१॥
हरि भाणा गुर भाइआ गुरु जावै हरि प्रभ पासि जीउ ॥
सतिगुरु करे हरि पहि बेनती मेरी पैज रखहु अरदासि जीउ ॥
पैज राखहु हरि जनह केरी हरि देहु नामु निरंजनो ॥
अंति चलदिआ होइ बेली जमदूत कालु निखंजनो ॥
सतिगुरू की बेनती पाई हरि प्रभि सुणी अरदासि जीउ ॥
हरि धारि किरपा सतिगुरु मिलाइआ धनु धनु कहै साबासि जीउ ॥२॥
मेरे सिख सुणहु पुत भाईहो मेरै हरि भाणा आउ मै पासि जीउ ॥
हरि भाणा गुर भाइआ मेरा हरि प्रभु करे साबासि जीउ ॥
भगतु सतिगुरु पुरखु सोई जिसु हरि प्रभ भाणा भावए ॥
आनंद अनहद वजहि वाजे हरि आपि गलि मेलावए ॥
तुसी पुत भाई परवारु मेरा मनि वेखहु करि निरजासि जीउ ॥
धुरि लिखिआ परवाणा फिरै नाही गुरु जाइ हरि प्रभ पासि जीउ ॥३॥
सतिगुरि भाणै आपणै बहि परवारु सदाइआ ॥
मत मै पिछै कोई रोवसी सो मै मूलि न भाइआ ॥
मितु पैझै मितु बिगसै जिसु मित की पैज भावए ॥
तुसी वीचारि देखहु पुत भाई हरि सतिगुरू पैनावए ॥
सतिगुरू परतखि होदै बहि राजु आपि टिकाइआ ॥
सभि सिख बंधप पुत भाई रामदास पैरी पाइआ ॥४॥
अंते सतिगुरु बोलिआ मै पिछै कीरतनु करिअहु निरबाणु जीउ ॥
केसो गोपाल पंडित सदिअहु हरि हरि कथा पड़हि पुराणु जीउ ॥
हरि कथा पड़ीऐ हरि नामु सुणीऐ बेबाणु हरि रंगु गुर भावए ॥
पिंडु पतलि किरिआ दीवा फुल हरि सरि पावए ॥
हरि भाइआ सतिगुरु बोलिआ हरि मिलिआ पुरखु सुजाणु जीउ ॥
रामदास सोढी तिलकु दीआ गुर सबदु सचु नीसाणु जीउ ॥५॥
सतिगुरु पुरखु जि बोलिआ गुरसिखा मंनि लई रजाइ जीउ ॥
मोहरी पुतु सनमुखु होइआ रामदासै पैरी पाइ जीउ ॥
सभ पवै पैरी सतिगुरू केरी जिथै गुरू आपु रखिआ ॥
कोई करि बखीली निवै नाही फिरि सतिगुरू आणि निवाइआ ॥
हरि गुरहि भाणा दीई वडिआई धुरि लिखिआ लेखु रजाइ जीउ ॥
कहै सुंदरु सुणहु संतहु सभु जगतु पैरी पाइ जीउ ॥६॥१॥ अंग 924

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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