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31. गुरू सिक्ख बाणीकार

श्री गुरू ग्रँथ साहिब के बाणीकारों की जो प्रमाणित तरतीब है, उसमें 4 महापुरूषों– भाई मरदाना जी, बाबा सुंदर जी, भाई सत्ता जी व भाई बलवण्ड जी की बाणी है। इन्हें गुरू घर के निकटवर्ती श्रद्धालु या गुरसिक्ख के तौर पर जाना जाता है। इनका जीवन व रचना का सँक्षेप अध्ययन इस प्रकार है।

भाई मरदाना जी
भाई मरदाना सिक्ख धर्म का प्रथम अनुयायी, नानक पातशाह के सच को पहचानने वाला और पूरी जिन्दगी साथ निभाने वाला गुरू का पूरा सूरा गुरसिक्ख 1459 ईस्वी को गुरू की ही नगरी तलवँडी में भाई बादरे के घर माई लख्खें की गोद में पैदा हुआ। भाई गुरदास जी ने अपनी वारों में जो अकालपुरखी (परमात्मिक) रूहों का जिक्र किया है, उसमें दूसरा अकाल पुरखी रूप भाई मरदाना हैं।

इक बाबा अकाल रूप, दूजा रबाबी मरदाना

भाई मरदाना जी ने जब एक बार गुरू साहिब की नज़र से नज़र मिला कर देखा तो ‘इक जोति दुइ मूरती’ का ईलाही प्रसँग स्थापित हो गया। भाई मरदाना को तो ज़िन्दगी ईश्वरीय दात प्राप्त थी। गुरू नानक का आलौकिक नाद व भाई मरदाना का रबाब पाँच सदियों से सिक्ख इतिहास के पैरोकारों का हृदय बना हुआ है। गुरू साहिब जी की उदासियों के दौरान करम से कदम मिलाते हुए भाई मरदाना स्वयँ नानक हो चुका था। गुरू पातशाह इस महापुरूष को किस प्रकार सत्कार देते हैं, इसका प्रकटाव जन्म-साखियों में से हो जाता है। जहाँ पापियों, पाखण्डियों, घमण्डियों व दुराचारियों के उद्धार के लिए भाई मरदाना माध्यम बनता है। अपनी जिन्दगी गुरू घर को अर्पित कर चुका यह सिक्ख आज भी सिक्ख धर्म में बड़ी उदाहरण के रूप में एक चिन्ह बन चुका है। इनके श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में बिहागड़े की वार में तीन सलोक दर्ज हैं, जिनका शीर्षक है– सलोक मरदाना एक, मरदाना एक व मरदाना एक। इस बाणी में विषय-विकार पैदा करने वाले नशों को छोड़कर सच्चे नाम के नशे के साथ जुड़ने की शिक्षा है। उदाहरण के रूप में एक सलोक इस प्रकार है:

सलोकु मरदानां ।। 1 ।।
कलि कलवाली कामु मदु मनूआ पीवणहारु ।।
क्रोध कटोरी मोहि भरी पीलावा अहंकारु ।।
मजलस कूड़े लब की पी पी होइ खुआरु ।।
करणी लाहणि सतु गुडु सचु सरा करि सारु ।।
गुण मंडे करि सीलु घिउ सरमु मासु आहारु ।।
गुरमुखि पाईऐ नानका खाधै जाहि बिकार ।। अंग 553

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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