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30. भट बाणी

सँस्कृत के शब्द ‘भ्रित’ का पँजाबी रूपांतरण ‘भट’ है। यह ‘भ्रि’ धतु से बना माना जाता है। यह शब्द आम करके उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जो पैसे लेकर अपने मालिक की ओर से लड़ते थे तथा मालिक के प्रति वफादारी का प्रकटाव करते हुए जिन्दगी और मौत को एक समान स्वीकार करते थे। इसके अतिरिक्त इस शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए भी किया जाता था जो महाबली योद्धाओं तथा शूरवीरों का गुणगान करते थे। ‘महानकोष’ ने भी ‘भट’ शब्द के अर्थ उन लोगों के लिए किए हैं जो महापुरूषों का यश गायन करते थे या बँसावलीनामा उच्चारण करके किसी मनुष्य या परिवार को चार चाँद लगाते थे। इसके साथ ही भट के अर्थ योद्धा एवँ वीर सिपाही के रूप में भी किए मिलते हैं। असल में इस जाति का सदियों पुराना इतिहास मौजूद है जो भटाकसुरी लिपि में है। नौवीं सदी ईसा से इनकी चढ़त के दिन आरम्भ होते हैं। राजस्थान के इलाके में इनकी अद्भुत कथाएँ प्रचलित हैं जो इनकी वीरता का गुणगान करती हैं और इन्हें समाज निर्माण करने वाले के रूप में सामने भी लाती हैं। राजा पृथ्वीचन्द को कैसे मुहम्मद गौरी की कैद से बाहर निकलवाया और फिर उसके हाथों मुहम्मद गौरी की हत्या कराके अपने आपको कुर्बान करने वाला चाँद भी भट कबीले से ही संबंधित था। चाँद भट का यह किस्सा राजस्थान के बच्चे बच्चे की जुबान पर अंकित है। स्पष्ट है कि भट्टों के दो ही मुख्य काम थे– कीर्ति तथा वीरता का प्रकटाव करना। जब पँजाब की धरती पर गुरू नानक पातशाह ने ‘1’ का नाद गुँजाकर शोषित से स्वतन्त्रता का प्रसँग सिरजते हुए, मनुष्य को मनुष्य होने का अहसास करवाया, उसे भूत एवँ भविष्य के चक्कर में से निकालकर उसका वर्तमान प्रसँग सिरजा, तो इस मत की सारी लोकाई को गुरू नानक साहिब में अपनी बन्द-खलासी की पैगम्बरी रूह के झलकारे नज़र आने लगे। अब गुरू नानक साहिब उनका सच्चा पातशाह था। गुरू नानक पातशाह के फैले इस प्रताप की महिमा जब भट्टों के कानों में पड़ी तो वे भी गुरू दरबार में पहुँचे। गुरू साहिबान जैसी ईश्वरीय रूहों के दर्शन करके इनकी आँखें मुँद गई, ये धन्य-धन्य कर उठे और फिर कीर्ति व वीरता के प्रकटाव की अनेक उदाहरणें हैं। भट्टों ने गुरू साहिबान की उस्तति में शब्द रचना भी की जो श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में मौजूद हैं और साथ ही जँगों-युद्धों में शहादतें भी दीं।

भट कलसहार जी बाणी: कुल जोड़ 54 : भट कलसहार जी ने पाँचों गुरू साहिबान जी की स्तुति में सवैंये उच्चारण किए हैं। आपके पिता जी का नाम भट चौखा जी था जो कि भट भिखा जी के छोटे भाई थे। भट गयंद जी आपके भाई थे। कई सवैयों में इन्होंने अपना नाम कलसहार के स्थान पर, उपनाम टल या कलह भी प्रयोग किया है।

भट जालप जी  बाणी: कुल जोड़ 5 : भट जालप जी को ‘जल’ नाम से भी सम्बोधित किया गया है। आप जी के पिता भट भिखा जी थे। आप जी के छोटे भाई भट मथुरा जी व भट कीरत जी थे, जिनके सवैंये भी श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में दर्ज है। आप जी के लेखन अनुसार आप जी के हृदय में जो सत्कार गुरू घर से तथा विशेषतय गुरू अमरदास जी के साथ था, उसकी सीमा का अनुमान लगाना कठिन था। 

भट कीरत जी बाणी: कुल जोड़ 8 : भट कीरत जी भट्टों की टोली के मुखिया भिखा जी के छोटे सुपुत्र थे। आप जी की बाणी जहाँ बहुत ही दिल को खींचने वाली है, वहीं उसका रूप श्रद्धामयी है। जहाँ आपने बाणी के द्वारा गुरू स्तुति की, वहीं गुरू हरिगोबिन्द साहिब जी की फौज में शामिल होकर मुगलों के विरूद्ध हुए युद्धों में शाही जलाल का प्रदर्शन करते हुए शहादत का जाम भी पिया।

भट भिखा जी बाणी: कुल जोड़ 2 : भट भिखा जी, भट रईआ जी के सुपुत्र थे एवँ आप जी का जन्म सुलतानपुर में हुआ था। आप जी के सुपुत्र भट कीरत जी, मथुरा जी व जालप जी ने भी गुरू अमरदास जी, गुरू रामदास जी तथा गुरू अरजन देव जी की बहुत ही सुन्दर शब्दों में स्तुति की है।

भट सलह जी बाणी: कुल जोड़ 3 : भट सलह जी, भट भिखा जी के छोटे भाई सेखे के सुपुत्र व भट कलह जी के भाई थे।

भट भलह जी बाणी: कुल जोड़ 1 : भट भलह जी, भट सलह जी के भाई व भिखाजी के भतीजे थे।

भट नलह जी बाणी: कुल जोड़ 16 : भट नलह जी को ‘दास’ के उपनाम से भी जाना जाता है। श्री गोइँदवाल साहिब जी की पवित्र धरती को आप बैकुण्ठ का दर्जा देते हैं। 

भट गयंद जी बाणी: कुल जोड़ 13 : भट गयंद जी, भट कलसहार जी के छोटे भाई व भट्टों के मुखिया भट भिखा जी के एक भाई चौखे के सुपुत्र थे। गुरू साहिबान की स्तुति में रचे भट गयंद जी के सवईयों में सिक्ख की अपने गुरू के प्रति सच्ची आस्था रूपमान होती है। 

भट मथुरा जी बाणी: कुल जोड़ 14 : भट मथुरा जी, अपने भाईयों भट कीरत जी व भट जालप जी तथा अपने पिता भट भिखा जी की तरह गुरू साहिब को परमात्मा स्वरूप मानते थे।

भट बलह जी बाणी: कुल जोड़ 5 : भट बलह जी, भट भिखा जी के भाई सेखे के सुपुत्र थे। 

भट हरिबंस जी बाणी: कुल जोड़ 2 : भट हरिबंस जी ने विलक्षण शैली में गुरू ज्योति की महिमा व महत्वता वर्णन करके उसे अखण्ड ज्योति के प्रति अपनी आस्था प्रकट की है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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