29. शेख फरीद जी
चिश्ती सिलसिले के प्रमुख बाबा फरीद जी का जन्म 1173 को गाँव खोतवाल जिला मुलतान
में शेख जमालुद्दीन सुलेमान के घर हुआ। आप जी की माता जी का नाम मरीयम था। आप की
पारिवारिक पृष्ठभूमि गज़नी के इलाके से जुड़ती है लेकिन नित्य की बंदअमनी के कारण आपके
बुजुर्ग मुलान के इस गाँव में आ बसे थे। बाबा फरीद के ऊपर इस्लामी रँगत लाने में
सबसे बड़ा योगदान आपकी माता जी का था। यह लिवलीनता इतनी प्रबल हुई कि सोलह साल की आयु
तक आपने हज की रस्म सम्पूर्ण करके हाजी की पदवी भी हासिल कर ली थी तथा सारा कुरआन
जुबानी याद करके आप हाफिज़ भी बन गए थे। इतिहास के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आपके
तीन विवाह हुए तथा आपके घर नौ बच्चे पैदा हुए। आपकी बड़ी पत्नि हिन्दुस्तान के
बादशाह बलबन की पुत्री थी, जिसने हर प्रकार के सुख आराम को त्याग करके सारी उम्र
फकीर वेष में व्यतीत कर दी। चिश्ती सिलसिले के प्रसिद्ध सूफी फकीर ख्वाजा
कुतुबद्दीन काफी आप जी के मुर्शद (गुरू) थे। इनकी मौत के बाद बाबा फरीद जी को मुखिया
नियुक्त कर दिया गया। आपने अपना ठिकाना पाकपटन बना लिया। यहाँ ही 1265 ईस्वी में
आपके शिष्य हज़रत निजामुद्दीन औलीया जो बाद में इनके गद्दीनशीन हुए, ने आप जी की
कब्र पर एक आलीशान मकबरा तासीर करवाया। सिक्ख धर्म के सँस्थापक गुरू नानक पातशाह जब
अपनी उदासियों (धार्मिक यात्राओं) के दौरान पश्चिम की ओर गए तो आप जी ने उस समय के
शेख फरीद जी के गद्दीनशीन शेख ब्रह्म, जो फरीद जी के पश्चात् ग्यारहवें स्थान पर
थे, को मिले। गुरू नानक साहिब व शेख ब्रह्म के बीच कई दिन तक सँवाद चला। शेख ब्रह्म,
गुरू साहिब से बेहद प्रभावित हुए एवँ अपने बर्जुर्ग मुर्शद की बाणी गुरू साहिब जी
के हवाले कर दी, जो पँचम पातशाह जी ने आदि श्री ग्रँथ साहिब जी की सम्पादना के समय
इस पवित्र ग्रँथ का हिस्सा बनाई।
बाणी रचना: 4 शब्द, 2 रागों
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