28. भक्त रामानन्द जी
भक्त रामानन्द जी ने उदारवादी सम्प्रदाय की नींव रखी। आपने शूद्रों भाव तथाकथित
अछूतों व अन्य छोटी जाति के भक्तों को अपने सम्प्रदाय में शामिल किया और उन्हें
हृदय से लगाकर भक्ति मार्ग में उनकी अगुवाई की। रामानन्द जी का सबसे खूबसूरत पहलू
यह था कि आप ने सँस्कृत का त्यागकर लोक-भाषा में अपने विचार पेश किए, बेशक सँस्कृत
में भी इनके कुछ ग्रँथ मिलते हैं। आपने अपना अन्तिम समय काशी के गँगा घाट के रमणीक
स्थान पर व्यतीत किया और यहाँ ही 1267 ईस्वी में परलोक गमन कर गए। श्री गुरू ग्रँथ
साहिब में आपका एक शब्द अंग 1195 पर राग बसंत में दर्ज है:
कत जाईऐ रे घर लागो रंगु ।।
मेरा चितु न चलै मनु भइओ पंगु ।। रहाउ ।।
एक दिवस मन भई उमंग ।। घसि चंदन चोआ बहु सुगंध ।।
पूजन चाली ब्रह्म ठाइ ।। सो ब्रहमु बताइओ गुर मन ही माहि ।।
जहा जाईऐ तह जल पखान ।। तू पूरि रहिओ है सभ समान ।।
बेद पुरान सभ देखे जोइ ।। ऊहाँ तउ जाईऐ जउ इहाँ न होइ ।।
सतिगुर मै बलिहारी तोर।। जिनि सकल बिकल भ्रम काटे मोर ।।
रामानन्द सुआमी रमत ब्रह्म ।। गुर का सबदु काटै कोटि करम ।।
अंग 1195