26. भक्त सधना जी
श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में भक्त सधना जी का एक शब्द राग बिलावल में जर्द है। इनकी
जन्म तिथि, देहान्त व माता-पिता के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती। यह
माना जाता है कि आप मुस्लिम परिवार से सम्बन्धित थे लेकिन बाद में किसी हिन्दू भक्त
के मेल से आप ने शरीयत को तिलाँजली दी। महानकोष में आपके नाम के नीचे जो जानकारी
मिलती है, उसमें बताया गया है कि आप सेहबान, जिला सिंध के रहने वाले थे और आपका पेशा
कसाई था। आपको प्रभु के प्यारों का मिलाप परमात्मा की भक्ति की ओर ले गया तथा आप
प्रभु की दरगाह में कबूल हुए। इस बात की पुष्टि भाई गुरदास जी की बारहवीं वार में
से हो जाती है:
धंना जटु उधरिआ सधना जाति अजाति कसाई ।।
भक्त सधना जी का श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में दर्ज शब्द इस तरह है:
नृप कंनिआ के कारनै इकु भइआ भेखधारी ।।
कामारथी सुआरथी वा की पैज सवारी ।।
तव गुन कहा जगत गुरा जउ करमु न नासै ।।
सिंघ सरन कत जाईऐ जउ जंबुकु ग्रासै ।। रहाउ ।।
ऐक बूंद जल कारने चातृकु दुखु पावै ।।
प्रान गए सागरु मिलै फुनि कामि न आवै ।।
प्रान जु थाके थिरु नहीं कैसे बिरमावउ ।।
बूडि मूए नउका मिलै कछु काहि चढ़ावउ ।।
मैं नाही कछु हउ नहीं किछु आहि न मोरा ।।
अउसर लजा राखि लेहु सधना जनु तोरा ।। अंग 858