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25. भक्त नामदेव जी

भक्त नामदेव जी का जन्म 1270 ईस्वी में महाराष्ट्र के जिला सतारा के गाँव नरसी बामणी में हुआ। भारतीय वर्ण-वर्ग में आपकी जाति छींबा, अछूत मानी जाती थी। आपके पिता जी का नाम दाम सेटी व माता जी का नाम गोना बाई था। आपने बचपन से ही परमात्मा से प्यार करने की कला अपने पिता जी से प्राप्त की। आपने धार्मिक विद्या के लिए विशोभा खेचर को गुरू धारण किया और सारी ज़िन्दगी निरगुण ब्रह्म के उपासक के रूप में व्यतीत की। परमात्मा से एकसुरता से आप स्वयँ हरि रूप हो गए थे, लेकिन उस समय के जाति पाति प्रबन्ध में उलझे समाज में आपका अनेक बार तिरस्कार हुआ। उच्च जाति के लोग शूद्र समझकर आप की बेइज्जती करना अपना हक मानते थे। मन्दिर में से धक्के देकर निकालने और परमात्मा द्वारा अपने भक्त की इज्जत-मानी रक्षा का उल्लेख आपकी बाणी में उपलब्ध है:

हसत खेलत तेरे देहुरे आइआ ।।
भगति करत नामा पकरि उठाइआ ।।
हीनड़ी जाति मेरी जादिम राइआ ।।
छीपे के जनमि काहे कउ आइआ ।।
लै कमली चलिओ पलटाइ ।।
देहुरै पाछे बैठा जाइ ।।
जिउ जिउ नामा हरि गुण उचरै ।।
भक्त जनां कउ देहुरा फिरै ।। अंग 1164

भक्त नामदेव जी की श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में दर्ज बाणी जहाँ परमात्मा को कायनात का मालिक दर्शाती है, वहीं उसके सिमरन से जो कृपा होती है, उसका जिक्र आप अपने खुद के साथ घटित घटनाओं से स्पष्ट कर देते हैं। इससे उस समय की सामाजिक बन्दर बाँट, हाकम की बेहुरमती व पुजारी की लूट का स्पष्ट उल्लेख भी मिलता है। ऐतिहासिक स्रोत इस बात की पुष्टि करते हैं कि अन्तिम दिनों में आप पँजाब आ गए और व गुरदासपुर जिले के गाँव घुमाण में रैन-बसेरा किया। आप ने 1350 ईस्वी में परलोक गमन किया।

बाणी कुल जोड़: 61 शब्द, 18 रागों में

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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