23. भक्त जयदेव जी
श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में दर्ज ‘भक्त बाणी’ के रचनहारों में भक्त जयदेव जी सबसे
बड़ी उम्र के थे। प्रचलित मत के अनुसार आप का जन्म 1170 ईस्वी में बँगाल के बीर भूमि
जिले के गाँव केंदली में हुआ। भाई काहन सिंह नाभा के अनुसार, जयदेव कनौज निवासी
भोजदेव ब्राह्मण का पुत्र, जो रमादेवी के गर्भ से केंदली, जिला बीर भूमि, बँगाल में
बारहवीं सदी के अन्त में पैदा हुआ। आरम्भ में जयदेव वैष्णव मताधरी कृष्ण उपासक थे
लेकिन तत्तवेता साधुओं की संगत के कारण आप एक करतार के अनन्य सेवक हो गए। भक्त
जयदेव जी की बाणी के अनुसार परमात्मा की प्राप्ति में अवगुण या हउमै रूकावट बन जाते
हैं तथा इससे बचने का एक ही राह मन बच कर्म की शुद्धता है। जीव को गोबिंद के जाप
में लीन रहना चाहिए, यह लीनता ही प्रभु के द्वार का राह है। इसी लीनता ने ही जयदेव
व गोबिन्द एक किए थे, जिसका जिक्र भक्त कबीर जी की बाणी में भी है:
जैदेउ नामा बिप सुदामा तिन कउ कृपा भई है अपार ।। अंग 856
बाणी: 2 शब्द, गूजरी व मारू राग में