22. भक्त सैण जी
श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी के अंग 695 पर राग धनासरी में भक्त सैण जी का एक शब्द
अंकित है। भक्त सैण जी का प्रमाणित जन्म वर्ष 1390 ईस्वी है व अन्तिम समय 1440 ईस्वी
माना जाता है। आप बिदर के राजा के शाही नाई थे और उस समय के प्रमुख संत ज्ञानेश्वर
जी के परम सेवक थे। आप जी के परोपकारी स्वभाव तथा प्रभु के प्यारे के रूप में
प्राप्त की हुई हरमन-प्यारता का बहुत खूबसूरत चित्रण श्री गुरू ग्रँथ साहिब व भाई
गुरदास जी की वारों में मिलता है। यह इस बात को रूपमान करती है कि प्रभु की कृपा के
राह में जाति या जन्म का कोई अर्थ नहीं है, उसका परा होने के लिए समर्पण प्रमुख गुण
है। गुरू अरजन पातशाह का महावाक्य है:
जैदेव तिआगिओ अहमेव ।। नाई उधरिओ सैनु सेव ।। अंग 1192
सो स्पष्ट है कि भक्त जनों की इज्जत रखने वाला स्वयँ अकालपुरख
है और वह इस कार्य को करने के लिए युगों-युगों से कार्यशील भी है। भक्त सैण जी का
श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में दर्ज शब्द इस प्रकार है:
धूप दीप घ्रित साजि आरती ।। वारने जाउ कमला पाती ।।
मंगला हरि मंगला ।। नित मंगलु राजा राम राइ को ।। रहाउ ।।
ऊतमु दीअरा निरमल बाती ।। तुही निरंजनु कमला पाती ।।
रामा भगति रामानंदु जानै ।। पूरन परमानंदु बखानै ।।
मदन मूरति भै तारि गोबिंदे ।। सैनु भणै भजु परमानंदे ।। अंग 695