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20. भक्त भीखन जी

भक्त भीखन जी की बाणी भी गुरू ग्रँथ साहिब जी के अंग 659 में दर्ज है। उनके दो शब्द राग सोरठ में है। बाणी के पहले शब्द की मुख्य भावना बैराग है और दूसरे शब्द में बैराग (अंजन माहि निरंजन) के बाद अकालपुरख (परमात्मा) की प्राप्ति की अवस्था का जिक्र है। डा. तारन सिंह इन्हें अकबर के राज के समय पैदा हुए मानते हैं और आप इस्लाम धर्म के सूफी प्रचारक थे एवँ इनका अन्तिम समय 1574 ईस्वी था। भाई काहन सिँह नाभा इन्हें काकोरी का वसनीक और सूफी फकीर के रूप में मान्यता देते हैं। मैकालिफ भी इसी धारणा को स्वीकार करता है। भक्त जी का श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में दर्ज शब्द इस प्रकार है:

नैनहु नीरु बहै तनु खीना भए केस दुध वानी ।।
रूध कंठु सबदु नही उचरै अब किआ करहि परानी ।।
राम राइ होहि बैद बनवारी।। अपने संतह लेहु उबारी ।। रहाउ ।।
माथे पीर सरीरि जलनि है करक करेजे माही ।।
ऐसी बेदन उपजि खरी भई वा का अउखधु नाही ।।
हरि का नामु अमृत जलु निरमलु इहु अउखधु जगि सारा ।।
गुर परसादि कहै जनु भीखनु पावउ मोख दुआरा ।।  अंग 659

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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